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________________ 31) (सुखी होने का उपाय होने का मार्ग प्राप्त करने के लिए समझने योग्य - निर्णय करने योग्य जो भी है वह मात्र उपर्युक्त विषय ही है; उपर्युक्त विषयो को ही चाहे अनेक ग्रन्थ पढ़कर अथवा संक्षेप में विचार के द्वारा ही निर्णय कर ले, करने योग्य तो मात्र यही उपर्युक्त विषय है। __इस ही विषय को और स्पष्ट करते हुए पंडितप्रवर पृष्ठ २५८ में कहते हैं- प्रश्न- "उपदेश तो अनेक प्रकार के हैं, किस-किस की परीक्षा करे?" समाधान- "उपदेश में (१) कोई उपादेय, (२) कोई हेय तथा (३) कोई ज्ञेय तत्त्वों का निरूपण किया जाता है। वहाँ (१) उपादेय (२) हेय तत्त्वों की तो परीक्षा कर लेना, क्योकि इनमें अन्यथापना होने से अपना बुरा होता है। उपादेय को हेय मान ले तो बुरा होगा, हेय · को उपादेय मान ले तो बुरा होगा।" और भी कहा है-- "इसलिये जैनशास्त्रों में जहाँ तत्त्वादिक का निरुपण किया; वहाँ तो हेतु, युक्ति आदि जिसप्रकार उसे अनुमानादि से प्रतीत आये उसीप्रकार कथन किया है। तथा त्रिलोक, गुणस्थान, मार्गणा, पुराणादि के कथन आज्ञानुसार किये है। इसलिये हेयोपादेय तत्त्वों की परीक्षा करना योग्य है।" ___ "वहाँ जीवादिक द्रव्यों व तत्त्वों को तथा स्वपर को पहिचानना तथा त्यागने योग्य मिथ्यात्वरागादिक और ग्रहण करने योग्य सम्यग्दर्शनादिक का स्वरूप पहिचानना तथा निमित्त-नैमित्तिकादिक जैसे है, वैसे पहिचानना। इत्यादि मोक्षमार्ग में जिनके जानने से प्रवृत्ति होती है, उन्हें अवश्य जानना। सो इनकी तो परीक्षा करना। सामान्य रूप से किसी हेतु युक्ति द्वारा इनको जानना व प्रमाण नय द्वारा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001863
Book TitleSukhi Hone ka Upay Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Patni
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year1998
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & philosophy
File Size6 MB
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