SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 13
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सार-संक्षेप (भाग - एक) सुखी होने का उपाय भाग-१ के माध्यम से हमने यह समझा कि इस विश्व के अस्तित्व का गंभीरता से अध्ययन करें तो यह विश्व छह द्रव्यों के समुदाय के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं है। वे छहों द्रव्य सब मिलकर संख्या की अपेक्षा अनंतानंत हैं। वे सब ही द्रव्य हर समय अपनी-अपनी अवस्थाओं अर्थात् पर्यायों को किसी अन्य द्रव्य की सहायता, सहयोग अथवा किसी भी प्रकार के हस्तक्षेप के बिना अनवरत रूप से करते रहते हैं। उनके इसप्रकार के परिणमन को कोई भी द्रव्य न तो रोक ही सकता है, न अटका ही सकता है अथवा न किसी भी प्रकार से फेरफार कर सकता है। इस ही से सारे विश्व की व्यवस्था सुनिश्चित है और अनादि-अनंत टिकी हुई इन अनंतानंत पदार्थों अर्थात् द्रव्यों में मैं भी एक द्रव्य हैं, मैं भी सभी द्रव्यों की तरह अपने ही गुणों में किसी भी अन्य द्रव्य के हस्तक्षेप के बिना अपने परिणमन अर्थात् पर्याय को अनादि से करता ही रहा हैं और भविष्य में भी अनंत काल तक निर्वाध गति से करता ही रहँगा। अतः मेरे हर समय के परिणमन अर्थात् पर्याय का उत्तरदायित्व मेरे अकेले का ही है। जगत् के छह जाति के अनंतानंत द्रव्यों में से किसी भी द्रव्य अथवा उसकी किसी भी पर्याय अथवा किसी भी प्रकार के कर्म आदि का उसमें हस्तक्षेप नहीं है। साथ ही मेरी किसी भी पर्याय के बिगाड़ को सुधारने की जिम्मेदारी भी मेरी अकेले की ही है, इसीप्रकार अच्छी पर्याय को Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001863
Book TitleSukhi Hone ka Upay Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Patni
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year1998
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & philosophy
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy