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________________ सुखी होने का उपाय) (102 उपरोक्त गाथा से फलित होता है कि आगम भी अध्यात्म का पूरक है, क्योंकि निश्चय-व्यवहार तो अध्यात्म के नय हैं और द्रव्यार्थिक-पर्यायार्थिक मुख्यतः आगम के नय है। इस गाथा में आगम नयों को अध्यात्मनयों का हेतु कहा है। तात्पर्य स्पष्ट है कि सभी नयों का एवं कथनों का तात्पर्य तो आत्मोपलब्धि कराना ही है। __द्रव्यार्थिक-पर्यायार्थिक नय, दोनों नय वस्तुस्वरूप का ज्ञान कराते हैं। द्रव्य है प्रयोजन जिसका वह द्रव्यार्थिक नय है। पर्याय है प्रयोजन जिसका वह पर्यायार्थिक नय है। इन दोनों नयों के विषय अपरिवर्तनीय है अर्थात द्रव्य हमेशा द्रव्य ही रहेगा, पर्याय हमेशा पर्याय ही रहेगी। अतः इन नयों का उद्देश्य वस्तु जैसी है, वैसी ही बताने का है। लेकिन जानने के समय अपनी रुचि के अनुसार ज्ञाता एक को मुख्य, एक को गौण रखते हुए जानता है। अतः इन दोनों नयों में जानने की अपेक्षा मुख्य-गौण व्यवस्था चलती निश्चय-व्यवहारनय का प्रयोग आत्मोपलब्धि कराने के प्रयोजन की पूर्ति के लिये होता है। अतः इन नयो का प्रयोग अपने प्रयोजनसिद्धि के आधार पर मुख्य-गौण व्यवस्थापूर्वक चलता है। इन नयों के प्रयोग में अपने प्रयोजन सिद्धि के लिए पर्यायार्थिकनय के विषयों में भी जिसको प्रयोजनभूत समझेगा उसे मुख्य करके जानेगा, वही निश्चय होगा, अन्य सब व्यवहार अर्थात् उपेक्षणीय हो जावेंगे। इसीप्रकार द्रव्यार्थिकनय के विषयों में भी जो इसको प्रयोजनभूत होगा वही मुख्य होकर निश्चय होगा बाकी द्रव्यार्थिक का भी अन्य विषय सब गौण रहने से व्यवहार मानकर उपेक्षणीय हो जावेंगे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001863
Book TitleSukhi Hone ka Upay Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Patni
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year1998
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & philosophy
File Size6 MB
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