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________________ वस्तु स्वभाव एवं विश्व व्यवस्था ] [ ३१ करते समय ही उस मरीज का देहावसान हो जावे तो विचार करिए कि डॉक्टर को मरीज के मारने रूप पापभाव माना जावेगा या बचाने का पुण्यभाव? और ऐसा क्यों माना गया? क्योंकि डॉक्टर ने तो अपने आत्मा में होने वाले भावों में तो बचाने का ही भाव किया था। इससे निष्कर्ष निकलता है कि जिसप्रकार हिंसा, अहिंसा भाव आत्मा में ही होता है उसी प्रकार धर्म अर्थात् निराकुल भाव भी आत्मा में ही उत्पन्न किया जा सकेगा। धर्म प्राप्त करने का मार्ग जिन उपायों के द्वारा आत्मा में होने वाली आकुलता को हटाकर निराकुलता उत्पन्न की जा सकती है, उन ही सब उपायों को जिनागम में धर्म प्राप्त करने का मार्ग अर्थात् मोक्षमार्ग के नाम से संबोधन किया है। उस निराकुलरूपी धर्मदशा प्राप्त करने के अनुकूल, शारीरिक क्रिया तथा बाहर के संयोग अर्थात् वातावरण को भी धर्मप्राप्ति में बाधक नहीं होकर सहकारी होने पर, उनको भी जिनागम में व्यवहार से धर्म का मार्ग कहा गया है। लेकिन अगर वे बाधक हों तो, उनको व्यवहार से भी धर्म का मार्ग नहीं माना जा सकता। इस विषय पर विस्तार से चर्चा आगे करेंगे। आत्मा को सुखी होना है अत: सुखी होने का उपाय विस्तार से समझे बिना एवं उस रूप अपनी परिणति बनाये बिना यह आत्मा सुखी कैसे हो सकेगा? उपरोक्त निर्णय होने के पश्चात् सहज ही जिज्ञासा खड़ी होना स्वभाविक है कि उस धर्म और उसके मार्ग का स्वरूप क्या है, जिसके द्वारा इस आत्मा को अपनी पर्याय में धर्म उत्पन्न करना है। क्योंकि धर्म के मार्ग की साधना तब ही प्रारंभ हो सकेगी जबकि उसका स्वरूप पहले समझा जावेगा । जैसे कि गन्तव्य स्थान पर पहुँचने के लिए उसका मार्ग पहले समझना ही पड़ेगा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001862
Book TitleSukhi Hone ka Upay Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Patni
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2007
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & philosophy
File Size7 MB
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