SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 98
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ संदेह-दोलावली ६१ अट्ठय सोड सगाई तह वीसं विसियाउ पसमरई । जिए सत्तरियं एवमाइं जत्थ सिद्धन्तपरमत्थो ॥११७॥ भन्नइ तं सेसं पि हु पवयणमिह चउपु कालवेलासु । न गुणिज्जा सेयासं चितासोए तिसु तिहिसु ।।११८॥ अर्थ उपदेशपद, पंचाशक, पंचवस्तु, शतक, कर्मसप्ततिका, कर्मविपाक, षडशीति, द्वयर्द्धशतक, जीवसमास, संग्रहणि, कर्मप्रकृति, पिण्डविशुद्धि, प्रतिक्रमणसमाचारी, स्थविरावली, प्रतिक्रमणसूत्र, सामायिक, चैत्यवन्दन, गुरुवन्दन; काउसग्गसूत्र, प्रत्याख्यानभाष्य, पंचसंग्रह, अणुव्रतादि विधि, क्षेत्रसमास, प्रवचनसार, उपदेशमाला, पंचसूत्र, श्रावकप्रज्ञप्ति, नरकवर्णनकुलक, सम्यकवसप्ततिका, अष्ट कजी, षोडशक, विशतिस्थानक, प्रशमरति, जिनसप्ततिका, इत्यादि प्रकरण जिनमें सिद्धान्त का परमार्थ पढा जाता है। वह अशेष प्रवचन चारकाल वेलाओंमें चैत्र आसोज में शुक्ल पक्षकी सप्तमी अष्टमी और नवमी इन तीन तिथियों में नहीं पढना चाहिए । प्रश्न - स्वाध्याय किस विधि से करने से सफल होता है ? मल-पढम पडिक्कमिऊणं इरियावहियं जहा समायारिं । निंदं विकहं कलहं हासक्किड्डाइं वज्जतो ॥११९॥ वयणदुबारे मुहणंतयं, च वत्थंचलं अह दाउं । सुत्तत्थे उबउत्तो सज्झायं कुणइ सुणइ पढ ॥१२०॥ अर्थ- पहिले इर्यावही करके विधि पूर्वक निद्रा, विकथा, लड़ाई, हँसी, क्रीड़ा आदि को छोड़ता हुआ । मुखवत्रिका, रूमाल या दुपट्टा अदि से मुखकी जयणा करके सूत्र और अर्थमें उपयोगीवान होता हुआ स्वाध्याय करे सुने और पढे। प्रश्न-उपवास करने में अशक्त दूसरे ढंग से भी उपवास की पूर्ति कर सकता है क्या ? हाँ, बताते हैं। मूल-चउरिक्कासणएहिं उववासो तहय निवियतएण । आयंबिलेहिं दोहिं, बारसपुरिमट्ठ उबवासो ॥१२॥ अर्थ- चार इकासनोंसे, तीन नीवियों से, दो आयंविलों से, एवं बारह पुरिमट्ठोसे, एक उपवास होता है। मूल-सज्झायसहस्सेहिं दोहि एगो हविज्ज उववासो । कारणओ करसइ पुण अहहिं दोकोसणेहिं च ॥१२२।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001859
Book TitleCharcharyadi Granth Sangrah
Original Sutra AuthorJinduttsuri
AuthorJinharisagarsuri
PublisherJindattsuri Gyanbhandar
Publication Year
Total Pages116
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy