________________
परिशिष्ट श्रीदिल्लीश्वरपातिसाह-अल्लावदीन-राज्यान्तर्गत - कन्नाणपुरवास्तव्य-वास्तुसार
ज्योतिष्कसार-गणितसार-रत्नपरिक्षा-द्रव्यपरीक्षादिग्रन्थकारश्रीमालकुलावतंस--परमजैन चंद्रांगज- ठक्कु रफेरू-विरचिता
श्रीयुगप्रधानचतुष्पदिका। प्रस्तुत ग्रंथकर्ता ठक्कुरफेरु का विशेष परिचय तो उपलब्ध नहीं होता पर उनके द्वारा निर्मित ग्रन्थों से ज्ञात होता है कि दिल्लीश्वर बादशाह अल्लाउद्दीन खीलजी के राज्यकाल में विद्यमान थे । आप राज्यकर्मचारियों में से उच्चपद पर और प्रामाधिपति भी थे। आपने युवावस्था में प्रथम हो युगप्रधानचतुष्पादिका नामक स्तुत्यात्मक ग्रन्थ की रचना की "युगप्रधान" याने तत्कालोन जैन संघ में होने वाले प्रधान आचार्य "चतुष्पदिका” याने उन आचायों के गुणों का चार चरणवाले पद्यों द्वारा स्तुति । प्रस्तुत ग्रंथ के आदि में भगवान् महावीर स्वामी को नमस्कार कर एवं सरस्वती देवी का स्मरण करने के बाद युगप्रधान आचार्यों का संक्षिप्त वर्णन प्रारम्भ होता है, जिसमें सुधर्मा स्वामी से लगाकर जिनचंदसूरि पर्यंत युगप्रधान आचार्यो के गुणों वर्णन है।
ग्रंथकी महिमा
संघ सहित फेरु इस प्रकार कहता है कि उपरोक्त बताये हुए युगप्रधान आचार्यों के गुणों की जो कोई स्तुति करता है, एवं गुणों का अध्ययन करता है तथा गुणों की आवृत्ति करता है, और नियमपूर्वक मंत्रवत् गुणों का नित्य स्मरण करता है, वह प्राणी मोक्षलक्ष्मी को अवश्य प्राप्त कर सकता है। संवत् १३४७ के माघ मास में कन्नाणपुर में राजशेखर वाचनाचाय के सम्मुख गुरुभक्ति से चंद्र के पुत्र फेरु ने यह युगप्रधानचतुष्पदिका, नामक काव्य की रचना की।
अंतमें शुभकामना ---
पांच मेरु पर्वत, एवं संपूणे द्वीप, चंद्र, सूर्य, ग्रह, नक्षत्र, और भी तारा वगैरह (समुद्र ) और पृथ्वी जिस प्रकार निश्चल है उसी प्रकार साधु-साध्वी, श्रावकभाविकारूप चतुर्विधसंघ सर्व प्रकार से समृद्धवान होता हुआ निश्चल रहे ?
अन्य ग्रन्थ रचना
(२) ज्योतिष्कसार, संवत् १३७२ ग्रं० श्लो० ४७४ । ग्रन्थ में ज्योतिष का विषय चार भाग में पूर्ण होता है।
(३) वास्तुसार, सं० १३७२ गाथा २८२ । विषय शिल्प कला विज्ञान (मुद्रित )
For Private & Personal Use Only
Jain Education International
www.jainelibrary.org