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(joint estate) और सरवाईवरशिप (survivorship) का नियम है । जैन-लॉ में ज्वाइन्ट टेनेन्सी ( joint tenaney) है। इनमें भेद यह है कि ज्वाइन्ट इस्टेट में यदि कोई सहभागी मर जाय तो उसके उत्तराधिकारी दायाद नहीं होते हैं; अवशिष्ट भागियों की ही जायदाद रहती है, और हिस्सों का तखमीना बटवारे के समय तक नहीं हो सकता है। परन्तु ज्वाईन्ट टेनेन्सी में (survivorship) सरवाईवर शिप सर्वथा नहीं होता। एक सहभागी के मर जाने पर उसके दायाद उसके भाग के अधिकारी हो जाते हैं। इसलिए हिन्दू-लॉ में खान्दान मुश्तरिका मिताक्षरा की दशा में मृत भ्राता की विधवा की कोई हैसियत नहीं होती है और वह केवल भोजनवस्त्र पा सकती है। जैन-लाँ में वह मृत पुरुष के भाग की अधिकारिणी होगी चाहे उसकी विभक्ति हो चुकी हो वा नहीं हो चुकी हो । पुत्र भी जैन-लॉ के अनुसार केवल पैतामहिक सम्पत्ति में पिता का सहभागी होता है और अपना भाग विभक्त कराकर प्रथक करा सकता है। किन्तु पिता की मृत्यु के पश्चात् वह उसके भाग को माता की उपस्थिति में नहीं पा सकता; माता की मृत्यु के पश्चात् उस भाग को पावेगा। अस्तु हिन्दु-लॉ में स्त्री का कोई अधिकार नहीं है। पति मरा और वह भिखारिणी हो गई। पुत्र चाहे अच्छा निकले चाहे बुरा माता को हर समय उसके समक्ष कौड़ी कौड़ी के लिए हाथ पसारना
और गिड़गिड़ाना पड़ता है। बहुतेरे नये नवाब भोगविलास और विषयसुख में घर का धन नष्ट कर देते हैं। वेश्यायें उनकी धन-सम्पत्ति द्वारा आनन्द करती हैं और उसको जलैव व्यय करती हैं। माता और पत्नी घर में दो पैसे की भाजी को अकिंचन बैठी रहती हैं। यदि भाई भतीजों के हाथ धन लगा तो वे काहे को मृतक की विधवा की चिन्ता करेंगे और यदि करेंगे भी तो टुकड़ों पर बसर करायँगे।
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