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________________ चतुर्थ परिच्छेद दाय जैन - लॉ के अनुसार दायाद का क्रम निम्न प्रकार है ( १ ) विधवा । ( २ ) पुत्र । ( ३ ) भ्राता । ( ४ ) भतीजा | (५) सात पीढ़ियों में सबसे निकट सपिण्ड ( १ ) | ( ६ ) पुत्री । ( ७ ) पुत्री का पुत्र | ( ८ ) निकटवर्ती बंधु । ( - ) निकटवर्ती गोत्रज ( १४ पीढ़ियों तक का ) । ( १० ) ज्ञात्या | ( ११ ) राजा । यह क्रम इन्द्रनन्दि जिन संहिता में दिया गया है ( देखा लो० ३५-३८ ) । वर्धमान नीति में भी यही क्रम कुछ संकोच से दिया है (देखो श्लो० ११ – १२ ) । इन्द्रनन्दि जिन संहिता में बंधू गोत्रज ज्ञात्या* और राजा को लौकिक रिवाज के अनुसार दायाद माना है (देखा लो० ३७ – ३८ ) । इसी पुस्तक के श्लोक १७-१८ में भी ( १ ) सपिण्ड का अर्थ सात पीढ़ियों तक के सम्बन्धी से है । * ज्ञात्या ( जातवाले) का भाव अनुमानतः ऐसे पुरुष का भी हो सकता है जो माता द्वारा सम्बन्ध रखता हो । कारण कि प्रारम्भ में ज्ञाति का अर्थ माता के पक्ष का था जैसा कि कुल का अर्थ पिता के कुटुम्ब का था । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001856
Book TitleJain Law
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampat Rai Jain
PublisherDigambar Jain Parishad
Publication Year1928
Total Pages200
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Ethics
File Size9 MB
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