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________________ पुत्र की सम्मति के बिना पैत्रिक सम्पत्ति के देने का अधिकार पिता को नहीं है (८२)। बाबा की अविभाजित सम्पत्ति भ्रातृवर्ग की सम्मत्ति के बिना किसी को नहीं दी जा सकती है (८३)। न वह पुत्री, दौहित्र, बहन, माता अथवा स्त्री के किसी सम्बन्धी को ही दी ना सकती है (८४)। स्थावर सम्पत्ति और मवेशी भी जो किसी मनुष्य ने पुत्रोत्पत्ति के पूर्व प्राप्त किये हैं, पुत्र होने के पश्चात् उनको बेच या दे नहीं सकता है (८५)। क्योंकि सब बालक जो उत्पन्न हुए हैं या गर्भ में हैं चाहे वे भाग कराने के अधिकारी हो या न हो उसमें से भरण पोषण का सब अधिकार रखते हैं। ८६)। हिन्दू-कानून के अनुसार जब पुत्र बालिग ( वयःप्राप्त ) हो जाय तो वह पिता की स्वयं उपार्जित सम्पत्ति में से भरण पोषण का अधिकार नहीं माँग सकता, यद्यपि पैत्रिक सम्पत्ति में उसे ऐसा अधिकार है (८७)। यही आशय जैन-कानून का भी है। क्योंकि पिता की सम्पत्ति में भी उसकी मृत्यु पश्चात् पुत्र सदा ही अधिकारी नहीं होते, किन्तु विधवा माता और कभी कभी ज्येष्ठ भाई ही उसको पाता है। कुटुम्ब की सब स्थावर सम्पत्ति जात या अजात पुत्रों के या दूसरे उन मनुष्यों के होते हुए जिनको अपना भरण पोषण पाने का अधिकार है, धार्मिक कार्यों, तीर्थयात्रा या मित्रों के सहायतार्थ भी (८२ ) भद्र० ६१-१२; अह ६६ । (८३) अहं ० ६६; वर्ध० ४६-५१ । (८४) वर्ध० ४६-५१। (८५) इन्द्र० ६; अर्ह० ८ । (८६) अह० ६-१० । (८७ ) गौड़ का हिन्दू कोड द्वि० वृ० पृ० ४७२; अम्मा कन्नू ब० अप्पू ११ मद. ६१ । For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.001856
Book TitleJain Law
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampat Rai Jain
PublisherDigambar Jain Parishad
Publication Year1928
Total Pages200
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Ethics
File Size9 MB
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