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________________ सीमा नियत नहीं है । परन्तु अर्हन्नीति में इस प्रकार उल्लेख है कि पिता के मरण के पश्चात् यदि बाँट हो तो प्रत्येक भाई अपने अपने भाग में से आधा आधा माता को देवें ( ४६ ) । इस प्रकार यदि ४ भाई हैं तो प्रत्येक भाई । चार आना हिस्सा पावेगा और माता का भाग चार आने के अर्धभाग का चौगुना होगा अर्थात् २x४= ८ आना होगा । पिता की जीवनावस्था में माता को एक भाग बाँट में मिलना चाहिए ( ४७ ) । पुत्रोत्पत्ति होने से माता एक भाग की अधिकारिणी हो जाती है ( ४८ ) । माता का वह भाग उसके मरण पश्चात् सब भाई परस्पर समानता से बाँट लें ( ४८ ) । बहिनों का अधिकार विभाजित होने के पश्चात् जो सम्पत्ति पिता ने छोड़ी है उसमें भाई और कुँवारी बहिन को समान भाग पाने का अधिकार है । यदि दो भाई और एक बहिन है तो सम्पत्ति तीन समान भागों में बँटेगी (५०) । बड़ा भाई छोटी बहिन का, छोटे भाई की भाँति, पालन करे (५१), और उचित दान देकर उसका विवाह करे ( ५२ ) । यदि ऐसी सम्पत्ति बचे जो बाँटने योग्य न हो तो उसे बड़ा भाई ले लेवे (५३) । यह अनुमान होता है कि बहिन का भाग केवल विवाह एवं गुज़ारे निमित्त रक्खा गया है, अन्यथा भाई की उपस्थिति में बहिन का कोई (४६) श्र० २८ । (४७) ० २७ । ( ४८ ) इन्द्र० २५ । ( ४ ) भद्र० २१; वर्ध० १०; श्र० २८ । (१०) इन्द्र० २७-२६ ॥ "" २८ । २६ । ३०। ( ५१ ) (१२) ५३) Jain Education International " "" For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001856
Book TitleJain Law
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampat Rai Jain
PublisherDigambar Jain Parishad
Publication Year1928
Total Pages200
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Ethics
File Size9 MB
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