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कारी हो जायेंगे (३५) । नहीं तो उनका भाग उनकी पत्नियों वा पुत्रों को यदि वे योग्य हों पहुँचेगा ( ३६ ) | या पुत्री के पुत्र को मिलेगा ( ३७ ) । दायभाग की अयोग्यता का यह भाव नहीं है कि मनुष्य अपनी निजी सम्पत्ति से भी वश्चित कर दिया जावे ( देखो भद्रबाहु० १०३ ) ।
जिस पुरुष की दायभाग लेने की इच्छा न हो उसको भी भाग न मिलेगा ( ३८ ) । और जो पुरुष मांसादिक अभक्ष्य ग्रहण करता है वह भी भाग से वञ्चित रहेगा ( ३८ ) । इस बात का अनुमानतः निर्णय न्यायालय से ही होगा और सम्भव है कि वर्तमान दशा में यह नियम परामर्श रूप ही माना जावे ।
साधु का भाग
यदि कोई पुरुष विभाजित होने से पूर्व साधू होकर चला गया हो तो स्त्रीधन को छोड़कर, सम्पत्ति के भाग उसी प्रकार लगाने चाहिए जैसे उसकी उपस्थिति में होते और उसका भाग उसकी पत्नी को दे देना चाहिए ( ४० ) । यदि उसके एक पुत्र ही है तो वह स्वभावतः अपने पिता के स्थान को ग्रहण करेगा । यदि कोई व्यक्ति अविवाहित मर जावे अथवा साधू हो जावे तो उसका भाग उसके भाई भतीजों को यथायोग्य मिलेगा ( ४१ ) ।
यदि वह विभाग
होने के पश्चात् मृत्यु को प्राप्त हो तो उसका भाग भाई भतीजे समान
इन्द्र० ४३ ।
( ३५ ) अर्ह ० ( ३६ )
( ३७ ) इन्द्र० ( ३८ ) इन्द्र०
( ३६ )
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( ४० ) भद्र० ८४ वर्ध० ४८ श्र० १० ।
( ४१ ) श्रर्ह० ६१ ।
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६४;
६४ ।
४४ ।
१० ।
४२ ।
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