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भगवान की पूजा करनेवाले सहधर्मी प्रतिष्ठाचार्य को पूजा की समाप्ति पर पूजा करानेवाला अपनी कन्या दे दे तो वह दैव विवाह है (२०)। यही दोनों उत्तम प्रकार के विवाह माने गये हैं क्योंकि इनमें वर से शादी के बदले में कुछ लिया नहीं जाता। कन्या के वस्त्र या कोई ऐसी ही मामूली दामों की वस्तु वर से लेकर धर्मानुकूल विवाह कर देना आर्ष विवाह है ( २१)।
कन्या प्रदान के समय “तुम दोनों साथ साथ रहकर स्वधर्म का आचरण करो'' ऐसे वचन कहकर विवाह कर देना प्राजापत्य विवाह कहलाता है ( २२)। इसमें अनुमानत: वर की ओर से कन्या के साथ विवाह करने की इच्छा प्रकट होती है और शायद यह भी आवश्यकीय नहीं है कि वह कुँआरा ही हो ( २३)। कन्या को मोल लेकर विवाह करना असुर विवाह है (२४)। कन्या और वर का स्वयं निजेच्छानुसार माता पिता की सम्मति के बिना ही विवाह कर लेना गान्धर्व विवाह है (२५)। कन्या को बरजोरी से पकड़कर विवाह कर लेना राक्षस विवाह है (२६) । अचेत, असहाय, या सोती हुई कन्या से भोग करके विवाहना पैशाच विवाह है ( २७ ) यह सबसे निकृष्ट विवाह है।
(२०) ३० अ० श्लो० ७२ । ( २१ ) ० अध्याय ११ श्लोक ७३ । ( २२ ) " " ७४ । (२३ ) गुलाबचन्द सरकार शास्त्री का हिन्दू-ला । (२४)अध्याय ११ श्लो० ७५ । (२५) " " " ७६ । (२६) " " " ७७। ( २७ ) " " " ७८।
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