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भी जहाँ कहीं वह धार्मिक सम्बन्ध रखता है एक दूसरे के विपरीत है । साधारण सभ्यता सम्बन्धो समानता विविध जातियों में जो एक साथ रहती सहती चली आई हैं, हुआ ही करती है । मुख्यतः ऐसी दशा में जब कि उनमें विवाहादिक सम्बन्ध भी होते रहें जैसे हिन्दू और जैनियां में होते रहे हैं । कुछ सामाजिक व्यवहार जैनियों, हिन्दुओं और मुसलमान इत्यादि में एक से पाये जाते हैं । परन्तु इनका कोई मुख्य प्रभाव धर्म-सम्बन्धो विषयों पर नहीं होता है। इसके अतिरिक्त राजाओं और बड़े पुरुषों की देखा देखी भी बहुत सी बातें एक जाति की दूसरी जाति में ले ली जाती हैं । आपत्ति - काल में धर्म और प्राणरक्षा के निमित्त भी धार्मिक क्रियाओं में 'बहुत कुछ परिवर्तन करना पड़ता है 1 गत समय में भारतवर्ष में हिन्दुओं ने जैनियों पर बहुत से अत्याचार किये । जैन श्रावकों और साधुओं को घोर दुःख पहुँचाये और उनका प्राणघात तक किया । ऐसी दशा में जैनियों ने अपने रक्षार्थ ब्राह्मणोय लोभ की शरण ली और सामाजिक विषयों में ब्राह्मणों को पूजा पाठ के निमित्त बुलाना आरम्भ किया 1 यह रिवाज अभी तक प्रचलित है और अब
१ स्वयं भद्रबाहु संहिता के एक दूसरे प्रकाशित भाग का निम्न श्लोक इस विषय को स्पष्टतया दर्शाता है
जँ कि चित्र उप्पादम् श्रण विग्ध ं च तत्थणासेई ।
दक्खिण देज सुवण गावी भूमिउ विप्प देवा ॥४॥ ११२ ॥ भावार्थ- जो कोई भी आपत्ति या कष्ट या पड़े तो उस समय ब्राह्मण देवताओं को सुवर्ण, गऊ और पृथ्वी दान देना चाहिए । शांति हो जाती है ।
इस प्रकार उसकी
नोट- जैनियों पर हिन्दुओं के अत्याचार का वर्णन बहुत स्थानों पर श्राया । निम्नांकित लेख एक हिन्दू मन्दिर के स्तंभ पर है जो हिन्दुशा की जैनियों के प्रति गत समय की स्पर्धा और अन्याय का ज्वलन्त उदाहरण है ( देखा
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