SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 192
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ विधवा किस प्रकार का अधिकार रखती है। अदालत अपील जिलाने फिर यही तजबीज फ़रमाया कि जैन-विधवा मालिक कामिल बअख्तियार इन्तकाल होती है। जैन मुद्दई ने यहाँ भी यही शहादत पेश की थी कि हिन्दू-लॉ मुकदमे से सम्बन्धित है । परन्तु जज महोदय ने इस पर यह फैसला फ़रमाया कि "इन गवाहों ने जिरह में इस बात को स्वीकार किया है कि वह कोई उदाहरण नहीं बता सकते हैं कि जहाँ हिन्दू-लॉ के अनुसार निर्णय किया गया हो और कारण वश उनको यह मानना पड़ा कि ऐसे उदाहरण उनको मालूम हैं कि जहाँ पर हिन्दू-लॉ की पाबन्दी नहीं हुई।" आगे अपील होने पर हाईकोर्ट ने निर्णय फरमाया कि इस बात के प्रमाणित करने के लिए कि जैनियों के लिए हिन्दू-लॉ से पृथकता करनी चाहिए शहादत अपर्याप्त है। और जैन-विधवा के अधिकार हिन्दू-विधवा से विरुद्ध नहीं हैं। हाईकोर्ट ने वाकयात पर भी जज से असम्मति प्रकट की और अपील डिगरी कर दिया। यह मुकदमा एक उदाहरण है उस दिक्कत का जो एक पक्षी को उठानी पड़ती है जब वह किसी रिवाज के प्रमाणित करने के लिए विवश होता है। इस प्रकार का एक और मुकदमा छज्जूमल ब० कुन्दनलाल (पंजाब) ७० इन्डियन केसेज़ पृष्ठ ८३८ पर मिलता है। यह १६२२ ई० का है। आज कुछ भी सन्देह जैन-विधवा के अधिकारों की निस्बत नहीं है और सब अदालते इस बात पर सहमत हैं कि वह मालिक कामिल बअख्तिार इन्तकाल होती है। मगर खेद ! कि जो शहादत मुद्दाले ने मुकदमा जेरबहस (हीरालाल ब० मोहन व मु० भैरो ) में पेश की थी वह अपर्याप्त पाई गई यद्यपि उसमें कुछ उदाहरण भी दिये गये थे और उनके विरोध में कोई भी उदाहरण नहीं था। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001856
Book TitleJain Law
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampat Rai Jain
PublisherDigambar Jain Parishad
Publication Year1928
Total Pages200
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Ethics
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy