SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 189
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अपने दाय के झगड़ों का निर्णय करा सके।” फैसले में यह भी बताया गया है कि “जैनियों के प्रमाणित नीति शास्त्रों के न होने के कारण अदालत इस बात पर बाध्य हुई कि साक्षी के आधार पर झगड़े का निर्णय करे।" बमुकदमे हुलास राय ब० भवानी जो छापा नहीं गया है और जिसका फैसला ७ नवम्बर सन् १८५४ को हुआ था ( इसका हवाला ६ एन० डब्ल्यु० पी० हाईकोर्ट रिपोर्ट स में पृष्ठ ३८६ पर है ) फिर यह प्रश्न उत्पन्न हुआ कि जैनी किस लॉ के पाबन्द हैं। इसकी निस्बत तन्कीहें इन शब्दों में कायम की गई:-- "प्राया श्रावगी कौम हिन्दू-लॉ को मानते हैं या नहीं ? यदि वे हिन्दू-लॉ के पाबन्द नहीं हैं तो क्या उनका कानून विधवा को पति की स्थावर सम्पत्ति में इन्तकाल का हक देता है ? आया श्रावगी कौम के नियमों के अनुसार विधवा मालिक कामिल जायदाद की होती है, या उसका हक केवल जीवन पर्यन्त ही है ?" दौराने मुकदमे में न्यायाधीश को जैनशास्त्रों के अस्तित्व का समाचार कुछ जैन गवाहों द्वारा, जिनका बयान कमीशन पर दिल्ली में हुआ, मालूम हुआ। मगर हाईकोर्ट में इस शहादत पर आक्षेप किया गया कि गवाहान ने अपने बयान बिना सौगन्द के दिये थे। इसलिए वहाँ से मुकदमा फिर अदालत इब्तदाई में नये सिरे से सुने जाने के लिए वापिस हुआ। परन्तु अन्तत: पारस्परिक पञ्चायत द्वारा उसका फैसला हो गया । मगर जैन-लॉ के बारे में यह आवश्यकीय बात फैसले में दर्ज है कि “धार्मिक विषयों में श्रावगी लोग अपने ही धर्म शास्त्रों के नियमों पर कार्यबद्ध होते हैं।" ___ इसके पश्चात् एक मुकदमा सन् १९६० का है (मुन्नूलाल ब. गोकलप्रसाद जो नज़ायर सदर दीवानी अदालत एन० डब्ल्यु. पी० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001856
Book TitleJain Law
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampat Rai Jain
PublisherDigambar Jain Parishad
Publication Year1928
Total Pages200
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Ethics
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy