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Confluence of Opposites नाम के ग्रन्थ में (विशेष करके अन्तिम व्याख्यान को देखो ) इस विषय को अधिकतया स्पष्ट किया है। इन ग्रन्थों में यह स्पष्ट करके दिखलाया गया है कि जैन धर्म सबसे पुराना मत है और जैनधर्म के तत्त्व भिन्न भिन्न दर्शनों और मते के आधारभूत हैं। मैं विश्वास करता हूँ कि जो कोई कषाय और हठ को छोड़कर Confluence of Opposites नाम की मेरी पुस्तक को पढ़ेगा और उसके पश्चात उन शेष पुस्तकों को पढ़ेगा जिनका उल्लेख किया गया है वह इस विषय में मुझसे कदापि असहमत न होगा। जो लोग कि जैनियों को हिन्दू धर्मच्युत भिन्नमतावलम्बी (डिस्सेंटर्ज़) कहते हैं उनकी युक्तियाँ निम्न प्रकार हो सकती हैं
१-यह कि शान्ति, जीव दया, पुर्नजन्म, नरक, स्वर्ग, मोक्षप्राप्ति और उसके उपाय विषयों में जैनियों के धार्मिक विचार ब्राह्मणों के से हैं।
२-जाति-बन्धन दोनों में समान रूप में है।
३-जैन हिन्दू देवताओं को मानते हैं; और उनकी पूजा करते हैं। यद्यपि वह उनको नितान्त अपने तीर्थकरों के सेवक समझते हैं।
४-जैनियों ने हिन्दू धर्म की बेहूदगियों को और भी बढ़ा दिया है। यहाँ तक कि उनके यहाँ ६४ इन्द्र और ३२ देवियाँ हैं।
अपने हिन्दू कोड के पृष्ठ १८०-१८१ पर महाशय गौड़ ने एल्फिन्स्टन की सम्मति के आधारभूत इन्हीं युक्तियों को उद्धृत किया है। किन्तु यह युक्तियाँ दोनों पक्ष में प्रबल पड़ती हैं। क्योंकि जब 'क' व 'ख' दो दर्शनों में कुछ विशेष बातें एक सी पाई जावें तो निश्चयत: यह नहीं कह सकते कि 'क' ने 'ख' से लिया है और 'ख' ने 'क' से नहीं। यह हो सकता है कि इन बातों को जैनियों ने हिन्दुओं से लिया हो, लेकिन यह भी हो सकता है कि
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