________________
प्रायार- दाण दंडा दायविभाया समुदिट्ठा ।
वसुगंदि इंदणं दिहि रचिया सा संहिदा पमायाहु ।। ५५ ।।
- दूसरा धर्म उनके लिए है जो व्रतों को पालते हैं । पवित्रता की वृद्धि ही जिनका आश्रय है । भरतक्षेत्र के कोशल देश में और अयोध्या नगरी में श्री ऋषभदेव उत्पन्न हुए । उन्होंने कर्मभूमि की रचना का उपदेश दिया था । उनके पुत्र भरत चक्रवर्ती ने आचार, दान, दण्ड, दाय और विभाग के नियम बनाये थे । वही वसुनन्दि इन्द्रनन्दि ने संहिता में कहा है सो प्रमाण है ।। ५३-५५ ।।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org