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अथ --लगड़े, अन्धे, रोगी, नपुंसक, पागल, अङ्गहीन भाई का पालन-पोषण शेष भाइयों को करना चाहिए ।। ५३ ॥
पत्यौ जीवति यः स्त्रीभिरलंकारो धृता भवेत् । न तं भजेरन्दायादा: भजमाना: पतन्ति ते ।।५४||
अर्थ-पति के होते हुए जो स्त्री जितने आभूषण धारण करती रहती है उनकी बाँट नहीं होती है। अगर कोई उसकी भी बाँट करें तो वे नीच समझे जावेंगे ।।५४।
स्वभर्तृद्रव्यं श्वशुरश्वश्रूभ्यां स्वकरे यदा । स्थापितं चेन्न शक्ताप्तु पतिदत्तेऽधिकारिणी ।।५५।। प्राप्नुयाद्विधवा पुत्र चेदगृह्णोयात्तदाज्ञया । तद्वंशजं च स्वलघु सर्वलक्षणसंयुतम् ।। ५६॥
(देखो भद्रबाहु संहिता ११५-११६ ) ।। ५५-५६ ॥ राजा निःस्वामिकं रिक्थ मात्र्यब्द सुनिधापयेत् । स्वाम्यासुतत्र शक्तस्तत्परतस्तु नृपः प्रभुः ।।५७।।
अर्थ-जिस धन का कोई स्वामी निश्चय न हो उसको राजा तीन वर्ष तक सुरक्षित रक्खे; (यदि उस समय भी ) कोई अधिकारी न हो तो उसको राजा स्वयं ग्रहण करे ::५७:!
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