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________________ गोद का पुत्र यदि प्रतिकूल हो जाय तो, चाहे वह विवाहित हो, राजा और बन्धुजन की साक्षी से निःसन्देह पिता उसको घर से निकाल सकता है ॥ २६ ॥ दत्तपुत्रं गृहीत्वा यः स्वाधिकार प्रदत्तवान् । जङ्गमे स्थावरे वाऽपि स्थातुं स्वं धर्भवर्तमनि ।। ३० ॥ ( देखो भद्रबाहुसंहिता ५५) ॥ ३० ॥ पुनः सो दत्तकः काललब्धि प्राप्य मृतो यदि । भर्तृद्रव्यादि यत्नेन रक्षयेत् स्तैन्यकर्मतः ।। ३१ ।। ( देखो भद्रबाहुसंहिता ५६ ) ॥ ३१ ॥ न तत्पदे कुमारोऽन्यः स्थापनीयो भवेत्पुनः । प्रेतेऽनुढे न पुत्रस्याज्ञाऽस्ति श्रोजैनशासने ॥ ३२ ।। (देखो भद्रबाहु संहिता ५७ ) ॥ ३२ ॥ सुतासुतसुतात्मीयभागिनेयेभ्य इच्छया । देयाद्धर्मेऽपि जामात्रे न्यस्मै वा ज्ञातिभोजने ।। ३३ ।। (देखो भद्रबाहुसंहिता ५८)॥ ३३ ॥ स्वयं निजास्पदे पुत्रं स्थापयेच्चेन्मृतप्रजा । युक्तं परमनूढस्य पदे स्थापयितुं न हि ॥ ३४ ।। ( देखो भद्रबाहुसंहिता ५६ ) ॥ ३४ ।। श्वशुरस्थापिते द्रव्ये श्वश्रूसत्वेऽथवा वधूः । नाधिकारमवाप्नोति भुक्त्याच्छादन मंतरा ।। ३५ ।। दत्तगृहादिकं कार्य सर्व श्वश्रूमनोनुगम् । करणीय सदा वध्वा श्वश्रूमातृसमा यतः ।। ३६ ।। अर्थ-सास के होते हुए मृत पुत्र की वधू को श्वशुर के द्रव्य में भोजन-वस्त्रादिक के व्यतिरिक्त और कुछ अधिकार नहीं है। पुत्र Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001856
Book TitleJain Law
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampat Rai Jain
PublisherDigambar Jain Parishad
Publication Year1928
Total Pages200
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Ethics
File Size9 MB
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