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अर्थ-यदि विवाहिता पुत्री निःसन्तान मर जावे तो उसके द्रव्य का मालिक उसका पति ही होगा ॥ २६ ।।
तयोरभावे तत्पुत्री दत्तको गोत्रियः सति । पितृद्रव्याधिप: स्याद्वै गुणवान् पितृभक्तिमान् ।। ३० ।।
अर्थ-पति-पत्नी दोनों के मरने पर पिता में भक्ति करनेवाला गुणवान पुत्र औरस हो अथवा दत्तक हो पिता के सम्पूर्ण द्रव्य का मालिक होता है ॥३०॥
ब्राह्मणक्षत्रियविशां ब्राह्मणेन विवाहिता। कन्यासजातपुत्राणां विभागोऽयं बुधैः स्मृतः ॥३१॥
अर्थ-ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्यों की कन्याओं का यदि ब्राह्मण के साथ विवाह किया जावे तो उनसे पैदा हुए पुत्रों का भाग पिता सम्बन्धी द्रव्य में इस प्रकार बुद्धिमान पुरुषों ने कहा है-॥३१।।
पितृद्रव्यं जंगमं वा स्थावरं गोधनं तथा । विभज्य दशधा सर्व गृह्णीयुः सर्व एकतः ॥३२।। विप्राजस्तुर्यभागान्वै त्रीन्भागान क्षत्रियासुतः । द्वौ भागौ वैश्यजो गृह्यादेकं धमे नियोजयेत् ॥३३॥
अर्थ-पिता के जंगम तथा गोधनादिक और स्थावर द्रव्य में दस भाग लगाकर भाइयों को इस प्रकार लेना चाहिए कि ब्राह्मणी से उत्पन्न हुए पुत्र को चार भाग, क्षत्रिया से उत्पन्न हुए को तीन भाग, और वैश्य माँ से उत्पन्न हुए को दो भाग, तथा अवशिष्ट एक भाग धर्मार्थ नियुक्त करें ॥३२-३३॥
यद्गेहे दासदास्यादिः पालनीयो यवीयसा । सर्वे मिलित्वा वा कुर्युरन्नांशुकनिबन्धनम् ॥ ३४ ॥
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