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सूक्ति-माला
६६७ अनुयोगद्वार सटीक
( ६३ ) जो समो सव्वभूएसु, तसेसु थावरेसु य । तस्स सामाइयं होइ, इह केवली भासियं ॥
___-पत्र २५६-१ -जो त्रस और स्थावर-सर्व जीवों के प्रति समभाव रखता है, उसी को सच्ची सामायिक होती है--ऐसा केवली भगवान् ने कहा है।
दशाश्रुतस्कंध
(६४) सुक्कमूले जहा रुक्खे, सिञ्चमाणे ण रोहंति । एवं कम्मा ण रोहन्ति, मोहणिज्जे खयंगए ॥ १४ ॥
-पत्र २७-१ -जैसे वृक्ष जो सूखा हुआ है, उसको सींचने पर भी वह नहीं लहलहाता है उसी प्रकार मोहनीय कर्म क्षय हो जाने पर पुनः कर्म नहीं उत्पन्न होते हैं ।
जहा दद्धाणं बीयाणं, ण जायंति पुणंकुरा । कम्म बीएसु दड्ढेसु, न जायंति भवंकुरा ॥ १५ ॥
-पत्र २७-१ -जैसे दग्ध बीजों के पुनरंकुर नहीं उत्पन्न होते हैं, उसी प्रकार दग्ध कर्म बीजों में से भवरूपी अंकुर उत्पन्न नहीं होते।
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