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शास्त्रविशारद जैनाचार्य स्वर्गीय श्री विजयधर्म सूरीश्वर जी
विश्वाभिरूपगण सत्कृत मेधिरत्व ! विद्याप्रचारक ! मुनीन्द्र ! जगद्धितैषिन ! भक्तयाऽर्पयामि भगवन् ! भवतेऽभिवन्द्य, स्वल्पामिमां कृतिमनल्प ऋणानुबद्धः ॥
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- विजयेन्द्र सूरि
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