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________________ (३१) तिरसठ लाख पूर्व वर्ष तक राज्य करने के पश्चात्, भगवान् ने भरत आदि को राज्य सौंप दिया और चैत्र कृष्ण अष्टमी के दिन विनीता-नगरी के मध्य से निकल कर सिद्धार्थवन नामक उद्यान में गये, जहाँ अशोक नाम का वृक्ष था । वहाँ उन्होंने चार मुष्टि लोच किया । चौविहार छठ का तप करके उत्तराषाढ़ा नक्षत्र में चन्द्रयोग प्राप्त होने पर, भगवान् ने इन्द्र का दिया देवदूष्य लेकर दीक्षा ग्रहण की । उस काल में लोग भिक्षा दान को नहीं जानते थे और एकान्त सरल थे । अतः १ वर्ष तक भगवान् को भिक्षा प्राप्त नहीं हुई । १ वर्ष बीत जाने पर, सब से पहले हस्तिनापुर में श्रेयांसकुमार से प्रभु ने ईख का ताजा रस ग्रहण किया । जगत में यही भिक्षा प्रथा का प्रारम्भ था । दीक्षा के दिन से एक हजार वर्ष तक प्रभु का छद्मस्थ काल जानना चाहिए | उसमें सब मिलाकर प्रमाद काल केवल १ दिन-रात का था । इस तरह आत्म-भावना भाते हुए १ हजार वर्ष पूर्ण होने पर, शरद ऋतु के चौथे महीने, सातवें पक्ष, फाल्गुन मास की कृष्ण एकादशी के दिन सुबह के समय पुरितमाल (प्रयाग) नगर में शकटमुखी नामक उद्यान में वट के वृक्ष के नीचे चौविहार अट्टम र तप किये हुए, उत्तराषाढ़ा नक्षत्र में चन्द्रयोग प्राप्त होने पर, ध्यानान्तर में वर्तते हुए, प्रभु को केवल ज्ञान और केवल दर्शन उत्पन्न हुए । इस प्रकार भगवान् ऋषभदेव ने बीस लाख पूर्व कुमारावस्था, तिरसठ लाख पूर्व राज्यावस्था, तिरासीलाख पूर्व गृहस्थावस्था, एक हजार वर्ष छद्मस्थ-पर्याय, एक हजार वर्ष कम एक लाख पूर्व तक केवली - पर्याय, एक लाख पूर्व चारित्र्यपर्याय, इस प्रकार कुल चौरासी लाख पूर्व का सर्वायु पूर्ण होने पर वेदनीय, आयु, नाम और गोत्र कर्म के क्षय हो जाने पर, इसी अवसर्पिणी (१) बिला जल ग्रहण किये दो दिनों का उपवास (२) बिला जल ग्रहण किये तीन दिनों का उपवास Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001854
Book TitleTirthankar Mahavira Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashinath Sarak Mumbai
Publication Year1960
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, Story, N000, & N005
File Size20 MB
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