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________________ श्रीमदर्हते नमः जगत्पूज्यश्रीविजयधर्मसूरिगुरुदेवेभ्यो नमः तीर्थंकर महावीर (१) भूगोल जैन-शास्त्रकारों की दृष्टि से इस भूमण्डल के मध्य में जम्बूद्वीप है। वह सबसे छोटा है और उसके चारों ओर लवणोद समुद्र है। लवणोद समुद्र के चारों ओर धातकी खण्ड है । इसी प्रकार एक द्वीप के बाद एक समुद्र और फिर उस समुद्र के बाद एक द्वीप । इन द्वीपों तथा समुद्रों की संख्या असंख्य है २ । अंतिम और सबसे बड़ा द्वीप स्वयम्भूरमण नामक है। वह स्वयम्भूरमण नामक समुद्र से घिरा हुआ है । शास्त्रकारों ने प्रारम्भ के ८ द्वीप और ८ समुद्रों के नाम इस प्रकार बताये हैं :(१) द्वीप जम्बूद्वीप, धातकी खण्ड, पुष्कर द्वीप, वरुणवर द्वीप, क्षीरवर द्वीप, घृतवर द्वीप, इक्षुवर द्वीप, नंदीश्वर द्वीप । (१) लोकप्रकाश, सर्ग १५, श्लोक ६. . (४) __, , २६. ६-१२. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001854
Book TitleTirthankar Mahavira Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashinath Sarak Mumbai
Publication Year1960
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, Story, N000, & N005
File Size20 MB
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