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________________ इन्द्रपूजा का उल्लेख मिलता है कि ५०० उच्चकुल की महिलाओं ने फूल, धूपदान आदि से युक्त होकर सौभाग्य के लिए इन्द्र की पूजा की। 'अंतगडदसाओ' (षष्ठ वग्ग, पृष्ठ ४७, मोदी-सम्पादित) में पोलासपुर के निवासियों का 'इन्दट्ठाए' (इन्द्रस्थान) पर जाने का उल्लेख मिलता है। इस इन्द्र का वर्णन कल्पसूत्र (सूत्र १३) में बड़े ही विस्तृत रूप में आया है। उस में इन्द्र के लिए कहा गया है कि वे (देविदे) देवताओं के स्वामी, (देवराय) देवताओं के राजा, (वज्जपाणि) वज्र धारण करनेवाले, (पुरन्दर) दैत्यों के नगर का विनाश करनेवाले, (सयक्कउ) श्रावक की पांचवीं प्रतिमा' (एक प्रकार की क्रिया-विशेष) को सौ बार करने वाले, (सहस्सक्खे) एक सहस्र नेत्र वाले [ इन्द्र के पाँच सौ मंत्री थे। उनकी एक सहस्र दृष्टियों की सलाह से वे कार्य करते हैं। इसलिए उन्हें सहस्राक्ष' कहते हैं।] (मघवं) मघवा-देव जिसका सेवक है, (पागसासणे) पाक-नामक दैत्य पर जो शासन करे अथवा शिक्षा दे, (दाहिणड्ढलोगाहिवई) दक्षिण लोकार्द्ध के स्वामी, (एरावणवाहणे) एरावण वाहन है, जिसका, (सुरिंदे ) देवताओं-सुरों को हर्ष करने वाला, (द्वित्रिशल्लक्षविमानाधिपतिः ) बत्तीस लाख विमानों के अधिपति, (अरय त्ति) जिस पर धूल न हो ऐसे (अंबरवत्थधरे) अम्बर तुल्य वस्त्र को धारण करने वाले, (आलइयमालमउडे) माला-मुकुट आदि को यथास्थान धारण करने वाले, (हैमत्ति चारुत्ति चित्त त्ति चंचल कुंडल त्ति) जिसके सोने के सुन्दर और चंचल कुडल हैं, (महिड्ढीए) महान् ऋद्धि वाले, (महज्जुए) महती द्युति वाले १-जैन-शास्त्रों में श्रावक (गृहस्थ) की ११ प्रतिमाएँ (क्रिया-विशेष) मानी जाती हैं । उनमें पांचवीं प्रतिमा का नाम प्रतिमा है। (उवासगदसाओ, पी. एल. वैद्य-सम्पादित, पृष्ठ २२६) इन्द्र ने अपने कार्तिक सेठ के भव में इस पाँचवीं प्रतिमा को १०० बार किया था। इसीलिए इन्द्र को 'शतक्रतु' कहते हैं । (कल्पसूत्र सुबोधिका टीका सहित, पृष्ठ ४४) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001854
Book TitleTirthankar Mahavira Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashinath Sarak Mumbai
Publication Year1960
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, Story, N000, & N005
File Size20 MB
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