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________________ (३५१) • वसुदेव हिंडी (पृष्ठ १८४) में भी इसी रूप में इन्द्रमह का प्रारम्भ वणित है। 'त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र' के शब्दों में कहिए ‘इन्द्रोत्सवः समारब्धो लोकरद्याऽपि वर्तते' तब से इस देश में इन्द्र की पूजा प्रचलित है। ___ निशीथचूर्णी (पत्र ११७४) में चार पर्वो-इन्द्रमह, स्कन्दमह, जक्खमह, भूयमह-के उल्लेख मिलते हैं। उनमें एक इन्द्रमह भी है। उसके अतिरिक्त इस पर्व का उल्लेख आवश्यक सूत्र हारिभदीयावृत्ति (पत्र ३५८-१) आचारांग (पत्र ३२८), जीवजीवाभिगम (पत्र २७१-२) में भी मिलता है । ठाएांग में अश्वयुक पौर्णमासी-आश्विन की पूर्णिमा को इन्द्रमह मनाये जाने का वर्णन है। आश्विन में इन्द्रमह मनाए जाने का वर्णन रामायण में भी आता है-- इन्द्रध्वज इवोद्भूतः पौर्णमास्यां महीतले । आश्वयुक्समये मासि गतश्रीको विचेतनः ॥ (किष्किधाकाण्ड, सर्ग १६, श्लोक ३६ पृष्ठ) उत्तराध्ययन की टीका (भावविजयगरिण-कृत) में कम्पिलपुर के राजा द्विमुख द्वारा इन्द्रमह मनाए जाने का विस्तृत वर्णन है। उसमें आता है उपस्थिते शक्रमहेऽन्यदा च द्विमुखो नृपः । नागरानादिशच्छक्रध्वजः संस्थांप्यतामिति ॥७॥ ततः पटु ध्वजपटं किंकिणीमालभारिणम् । माल्यालिमालिनं रत्न-मौक्तिकावलिशालिनम् ॥७॥ वेष्टितं चीवरवरैर्नान्दीनिर्घोषपूर्वकम् । दुतमुत्तम्भयामासुः पौराः पौरंदरं ध्वजं ॥७२॥ २-निशीथचूर्णी में (पत्र ११७४) में इन्द्रमह के आषाढ़ पूणिमा को तथा लाड देश में श्रावण पूर्णिमा को मनाये जाने का उल्लेख है। आवश्यक सूत्र नियुक्ति वृत्ति सहित में क्वार अथवा कार्तिक की पूर्णिमा को इन्द्रमह मनाए जाने का उल्लेख है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001854
Book TitleTirthankar Mahavira Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashinath Sarak Mumbai
Publication Year1960
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, Story, N000, & N005
File Size20 MB
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