________________
इन्द्रमह
जैन-ग्रन्थों में ६४ इन्द्रों के उल्लेख हैं । हम उनका सविस्तार वर्णन पृष्ठ - २३०-२३१ की पादटिप्परिण में कर आये हैं। उनमें से प्रथम देवलोक के इन्द्र शक्र का उत्सव इन्द्रमह है।
जैन-ग्रन्थों में ऐसा वर्णन मिलता है कि इस देश का 'नाम' इस देश के प्रथम सम्राट् भरत के नाम पर पड़ा। वे ऋषभदेव के पुत्र थे।' इस देश में
१-प्रियव्रतो नाम सुतो मनोः स्वायंभुवस्य यः ।
तस्याग्नीध्रस्ततो नाभिऋषभस्तत्सुतः स्मृतः ॥ तमाहुर्वासुदेवांशं मोक्षधर्मविवक्षया । अवतीर्णं सुतशतं तस्यासीद् ब्रह्मपारगम् ॥ तेषां वै भरतो ज्येष्ठो नारायणपरायणः । विख्यातं वर्षमेतद्यन्नाम्ना भारतमद्भुतम् ॥
-भागवत खण्ड २, स्कंध ११, अध्याय २ पृष्ठ ७१० (गोरखपुर)। वायुपुराण में भी यही परम्परा लिखी हैहिमाद्रेर्दक्षिणं वर्ष भारताय न्यवेदयत् । तस्मात्तं भारते वर्षे तस्य नाम्ना विदुर्बुधाः ॥
वायुपुराण अ० ३३, श्लोक ५२ । जैन ग्रन्थों में भी ऐसा ही वर्णन मिलता है। 'वसुदेवहिण्डी' में उल्लेख है
इहं सुरासुरेन्द्रविंदवंदियचलणारविंदो उसभो नाम पढमो राया जगप्पियामहो आसी । तस्स पुत्तसयं । दुवे पहाणाभरहो बाहुबली य । उसभसिरी पुत्तसयस्स पुरसयं च दाऊण पब्वइओ। तत्थ भरहो भरहवास चूडामणी, तस्सेव नामेण इहं 'भरतहवासं' ति पवुच्चति ।
-वसुदेवहिण्डी, प्रथम खण्ड, पृष्ठ १८६ ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org