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________________ तापस औपपातिक सूत्र में एक स्थल पर गंगा के तट पर बसे वानप्रस्था तापसों का उल्लेख आया है। उक्त सूत्र इस प्रकार है :-- से जे इमे गंगाकूलगा वाणपत्था तावसा भवंति, तं जहा-होत्तिया पोत्तिया कोत्तिया जण्णई सड्ढई थालई हुँपउट्ठा दंतुक्खलिया उमज्जका सम्मजका निम्मज्जका संपखाला दक्खिणकूलका उत्तरकूलका संखधमका कूलधमका मिगलुद्धका हत्थितावसा उदंडका दिसापोक्खिणो वाकवासिणो अंबुवासिणो बिलवासिणो जलवासिणो वेलवासियो रुक्खमूलिआ अंबुभक्खिरणो वाउभक्खिणो सेवालभक्खिणो मूलाहारा कंदाहारा तयाहारा पत्ताहारा पुप्फाहारा बीयाहारा परिसडियकंदमूलतयपत्तपुप्फफलाहारा जलाभिसेअकढिणगायभूया, आयावणाहिं पंचग्गितावेहिं इंगालसोल्लियं कंडुसोल्लियं कट्ठसोल्लियंपिव...।... इसकी टीका अभयदेवसूरि ने इस प्रकार की है : 'गंगाकूलग'त्ति गंगाकूलाश्रिताः 'वानप्पत्थ'त्ति वने-अटव्यां प्रस्थाप्रस्थानं गमनमवस्थानं वा वानप्रस्था सा अस्ति येषां तस्यां वा भवा वानप्रस्थाः - 'ब्रह्मचारी गृहस्थश्च वानप्रस्थो यतिस्तथे' त्येवंभूततृतीयाश्रमवर्तिनः – 'होत्तिय' त्ति अग्निहोत्रिकाः, पोत्तिय' त्ति वस्त्रधारिणः, 'कोत्तिय' त्ति भूमिशायिनः 'जन्नई' ति यज्ञयाजिनः, 'सडइ' ति श्राद्धाः, 'थालइ' त्ति गृहीतभाण्डाः, ‘हुंबउटु' त्ति कुण्डिकाश्रमणाः, ‘दंतुक्खलिय' त्ति फलभोजिनः, 'उम्मज्जक' त्ति उन्मज्जनमात्रेण ये स्नान्ति, 'संमज्जग' त्ति उन्मज्जनस्यैवासकृत्करणेन ये स्नान्ति, 'निमज्जक' त्ति स्नानार्थ निमग्ना एव ये क्षणं तिष्ठन्ति, १-औपपातिक सूत्र, सूत्र ३८, पत्र १७०।१७१ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001854
Book TitleTirthankar Mahavira Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashinath Sarak Mumbai
Publication Year1960
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, Story, N000, & N005
File Size20 MB
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