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परिशिष्ट १ महावीरकालीन धार्मिक स्थिति जैन-साहित्य द्वारा महावीरकालीन धर्म, दर्शन तथा धार्मिक स्थिति पर बड़ा अच्छा प्रकाश पड़ता है।
हम इस प्रकरण में पहले धार्मिकवादों पर विचार करेंगे। सूत्रकृतांग में उनका उल्लेख इस प्रकार है :
किरियावाईणं अकिरियावाईणं अन्नाणियवाईणं वेणइयवाईणं ।
इन वादों के उल्लेख जैन-साहित्य में अन्य स्थलों पर भी आये हैं। हम यहाँ आगम-ग्रंथों में आये प्रसंगों को दे रहे हैं :
(१) चत्तारि वातिसमोसरणा पं. तं.-किरियावादी, अकिरियावादी, अन्नाणियवादी, वेणझ्यवादी।
-स्थानांग सूत्र सटीक, ठाणा ४, उद्देशा ४, सूत्र ३४५ (पूर्वार्द्ध),
पत्र २६७-२। (२) गोयमा ! चत्तारि समोसरणा पन्नता, तंजहा किरियावादी, अकिरियावादी, अन्नाणियवाई, वेणइयवाई। --भगवती सूत्र, शतक ३०, उद्देशा १, सूत्र १, (भगवान्दास हर्षचंद दोषी
सम्पादित) भाग ४, पृष्ठ ३०२ । १-सूत्रकृतांगसूत्र, भाग २, अध्याय २, सूत्र ४०, पत्र ८१-१ ।
(गौड़ी पार्श्व जैन ग्रन्थमाला, बम्बई)
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