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________________ (२१७) यही तापस घोर तपश्चर्या कर रहा था। उसकी जटाओं से जो जूएं गिरतीं, उनको उठा कर वह पुनः अपनी जटा में रख लेता। उसे देखकर गोशालक ने महावीर स्वामी से पूछा- ''यह जूओं का घर कौन है ?" इस प्रकार गोशाला को बार-बार प्रश्न करते देख, तापस को क्रोध आया और उसने अपनी तेजोलेश्या गोशाला के ऊपर छोड़ी। गोशाला डर के मारे भागा और भगवान् के बगल में जा छिपा। भगवान ने शीतलेश्या से तेजोलेश्या का निवारण किया । यह देखकर उस तापस ने भगवान से कहा"यह आपका शिष्य है । यह मुझे नहीं ज्ञात था । नहीं तो, मैं ऐसा न करता।" और, वह चला गया। तेजोलेश्या की बात सुनकर, गोशाला ने भगवान् महावीर से उसे प्राप्त करने की विधि पूछी। तेजोलेश्या प्राप्त करने की विधि बतलाते हुए भगवान ने कहा"छ: महीने तक लगातार छठ की तपश्चर्या ( दो उपवास ) करके सूर्य के सामने दृष्टि रखकर खड़े-खड़े उसकी आतापना ले और पकाये हुए मुट्ठी भर छलकेदार कुल्माष' और चिल्लू भर पानी से पारना करे तो उस तपस्वी को थोड़ी-बहुत मात्रा में तेजोलेश्या की प्राप्ति होती है।"२ । कुछ समय के बाद भगवान् ने फिर सिद्धार्थपुर की ओर विहार किया। जब वे उस तिल के पौधे के पास पहुंचे, तो गोशाला बोला-"देखिये भगवन् ! वह तिल का पौधा नहीं पनपा, जिसके सम्बंध में आपने भविष्यवाणी की थी।" भगवान् ने अन्य स्थान पर उगे तिल के पौधे को दिखला कर कहा-"गोशाला ! यह वही तिल का पौधा है, जिसे तुमने उखाड़ १-'कुल्माषाः' राजमाषाः-नेमिचंद्राचार्यकृत उत्तराध्ययन टीका, पत्र १२६-१ २-आवश्यक चूरिण, प्रथम भाग, पत्र २६६, तेजोलेश्या प्राप्त करने की विधि के सम्बन्ध में हारिभद्रीयावश्यक वृत्तिटिप्पणकम् में श्रीमन्मलधार गच्छीय हेमचन्द्र ने लिखा है—अंगुलीचतुष्टयनखाक्रान्तहस्ते यका मुष्टिर्वध्यते सा सनखा कुल्माष पिण्डिकेत्युच्यते (पत्र २५-२) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001854
Book TitleTirthankar Mahavira Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashinath Sarak Mumbai
Publication Year1960
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, Story, N000, & N005
File Size20 MB
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