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________________ (२००) उस नगरी में पितृदत्त नाम का गाथापति (गृहस्थ ) रहता था। उसकी भार्या का नाम श्रीभद्रा था। उसे जब बच्चे होते तो मृत ही जन्मते। अतः उसने शिवदत्त-नाम के नैमित्तिक से पूछा- "मुझे कोई ऐसा मार्ग बताइये कि जिससे मेरे बच्चे जियें ।" शिवदत्त ने उसे बताया--''मृत जन्मे हुए बालक का रुधिर-मांस पीसकर उसकी खीर बनाकर किसी तपस्वी-साधु को खिलाने से तुम्हारे पुत्र जीवित रहेंगे। लेकिन, जब वह खा कर चला जाये, तब तुम अपना घर बंद कर देना, ताकि क्रुद्ध होकर वह तुम्हारा घर न जला पाये ।" उसी दिन श्रीभद्रा को मत पुत्र जन्मा था। उसने उसकी खीर उसी विधि से बनायी। और, उसे बनाने के बाद, वह किसी साधु की प्रतीक्षा में द्वार पर खड़ी थी । इतने में गोशाला उसे दिखायी पड़ा। उसने खीर गोशाला को खिला दिया । लौट कर आने के बाद गोशाला ने खीर खाने की बात भगवान से कही। और, भगवान् ने मृत बच्चे की बात गोशाला को बता दी। गोशाला ने मुंह में उँगली डाल कर वमन किया तो उसे भगवान् की सब बातें सच मालूम हुई। इस घटना का भी प्रभाव गोशाला पर पड़ा और 'यद् भावी तद् भवति" की भावना उसमें अधिक सुदृढ़ हो गयी। क्रुद्ध होकर वह गया और उसन भिक्षा देने वाली स्त्री का सारा मुहल्ला जला ही दिया। श्रावस्ती से भगवान् हल्लिदुय गाँव की ओर गये । उस नगर से बाहर हलिग नामका एक विशाल वृक्ष था। भगवान् उसके नीचे कायोत्सर्ग में स्थिर हो गये । गोशाला भी साथ में था। श्रावस्ती जाने वाला एक सार्थवाह रात में निकट ही ठहरा था। सर्दी से बचने के लिए उन लोगों ने रात्रि में फूस जलाया । सुबह होते ही सार्थवाह वहाँ से चला गया। पर, रात की आग बढ़ते-बढ़ते वहाँ आ पहुँची, जहाँ भगवान् ध्यानावस्थित थे। गोशाला ने भगवान् से कहा-"भगवन् चलिये। आग इस ओर आ रही है।" ऐसा कह कर गोशाला तो चला गया; पर भगवान् महावीर वहीं रह गये। इससे भगवान के पैर आग से झुलस गये । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001854
Book TitleTirthankar Mahavira Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashinath Sarak Mumbai
Publication Year1960
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, Story, N000, & N005
File Size20 MB
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