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________________ (१९७) और पात्रादि उपकरणों से युक्त थे। गोशाला ने उनसे पूछा-'आप कौन है ?" उन लोगों ने उत्तर दिया-"हम निर्गन्थ हैं और भगवान् पार्श्वनाथ के शिष्य हैं।" गोशाला ने कहा--"आप किस प्रकार के निर्गन्थ हैं। इतना वस्त्र और पात्र साथ रख कर भी आप अपने को निर्गन्थ बताते हैं । लगता है, आजीविका चलाने के लिए आपने धोंग रच रखा है। सच्चे निर्गन्थ तो मेरे धर्माचार्य हैं, जिनके पास एक भी वस्त्र या पात्र नहीं है और वे त्याग तथा तपस्या की साक्षात् मूर्ति हैं। पार्श्वपत्य साधु ने कहा—'जैसा तू है, वैसे ही तेरे धर्माचार्य भी स्वयंगृहीत लिंग होंगे।" ___ इस प्रकार की बात सुन कर गोशाला बड़ा क्रुद्ध हुआ। उसने श्राप दिया कि मेरे धर्माचार्य के तपस्तेज से तुम्हारा उपाश्रय जल कर भस्म हो जाये। उन निर्गन्थों ने गोशाला की श्राप की अपेक्षा करते हुए कहा"लेकिन, तुम्हारे कहने से कुछ नहीं होने वाला है।" बहुत देर तक गोशाला उन साधुओं से वादविवाद करता रहा । अंत में थक कर वापस लौट आया। लौट कर उसने भगवान से पूछा-"आज परिग्नही और आरम्भी साधुओं से विवाद हो गया । और, मेरे श्राप देने पर भी उनका उपाश्रय जला नहीं। इसका क्या कारण है ?" गोशाला की बात सुनकर, भगवान् ने उसे बताया कि वे पार्श्वनाथ के संतानी साधु थे। ___ कुमाराक से गोशाला के साथ भगवान् चोराक-सन्निवेश' में गये। यहाँ पर चोरों का भय होने से पहरेदार बड़े सतर्क रहते थे। वे किसी अपरिचित को गाँव में नहीं आने देते थे। जब भगवान् गाँव में पहुँचे, तो पहरेदारों ने भगवान से परिचय माँगा; लेकिन भगवान् ने कुछ भी उत्तर नहीं दिया । पहरेदारों ने उन्हें गुप्तचर समझ कर पकड़ लिया। पहरेदारों ने भगवान और गोशाला दोनों को बहुत र ताया, पर दो में से किसी ने कुछ भी उत्तर नहीं दिया । इसकी सूचना उत्पल नैमित्तिक की बहिनें सोमा और जयन्ती को मिली। वे संयम ले कर पालने में असमर्थ हो परिव्राजिकाएं हो गई थी और उसी ग्राम में रहती थीं। वे दोनों घटनास्थल पर आयीं और १-आवश्यक चूणि, भाग १, पत्र २८६ । गोरखपुर जिले में स्थित चौरा-चोरी। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001854
Book TitleTirthankar Mahavira Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashinath Sarak Mumbai
Publication Year1960
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, Story, N000, & N005
File Size20 MB
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