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(१७५) (उ) सोमवंशी भवगुप्त प्रथम के ताम्रपत्र में जो हस्तिपद नामक स्थान आया है, वह भी सम्भवतः हत्थिग्राम है।
-वीर-विहार-मीमांसा (हिन्दी), पृष्ठ ३ इस 'हस्तिपद' या 'हस्तिग्राम' का अस्तित्व ईसवी सन् की तीसरी शताब्दी तक था; क्योंकि शैलेन्द्रवंशीय जावा, सुमात्रा और मलयदेश के राजा बालपुत्रदेव-जो नालंदा में महाविहार बनाना चाहते थे-ने पाल-वंश के महान राजा देवपाल के पास दूत भेज कर उनसे पाँच गाँव मांगे थे । देवपाल बौद्ध धर्म का संरक्षक था। अतः उसने राजा बालपुत्र की प्रार्थना स्वीकार कर ली और पाँच गाँव भेंट किये । उन पाँच गाँवों में नातिका और हस्ति (हस्तिग्राम) का स्पष्ट उल्लेख है-देखिये 'हिस्ट्री आव बेंगाल', वाल्यूम १ पृष्ठ १२१-६७१ सम्पादक आर० सी० मजूमदार तथा नालंदा ऐंड इट्स एपीग्राफिक मिटीरियल पृष्ठ ९७, १०० ।
वैशाली से भोगनगर जाते हुए, रास्ते में 'हस्थिग्राम' पड़ता था और वह वज्जि प्रदेश में स्थित था।
'डिक्शनरी आव पाली प्रापर नेम्स,' भाग २, पृष्ठ १३१८
बुद्ध के विहार में हथिगाम वैशाली से दूसरा पड़ाव था और भगवान् महावीर के विहार में क्षत्रियकुण्ड से हथिगाम ( अस्थिकग्राम ) चौथा पड़ाव था। अढिगामस्स पढमं वद्धमाणयं णाम होत्था
-आवश्यक चूणि, पृष्ठ २७२ अर्थ-अस्थिकगाँव का नाम पहले वर्द्धमान था।
शूलपाणि नामक यक्ष द्वारा मारे गये बहुत से मनुष्यों की अस्थियाँ, यहाँ एकत्र हो जाने से, इसका नाम 'अस्थिकग्राम' पड़ गया। क्योंकि 'अस्थि' माने 'हड्डी' और 'ग्राम' याने 'समूह' इस प्रकार 'अस्थिकग्राम' का अर्थ 'हड्डीयों का समूह' हुआ। ' 'वर्धमान' नामधारी नगर के निम्न लिखित उल्लेख पाये जाते हैं:
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