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(१६६) लेते हैं । और, वे यह देखने की चेष्टा नहीं करते कि 'मधु' का वस्तुतः कुछ अन्य अर्थ है भी या नहीं। अतः ऐसे व्यक्तियों की जानकारी के लिए हम यहाँ कुछ प्रमाण दे रहे हैं :(१) मधु=शूगर (शर्करा) मोन्योर-मोन्योर-विलियम्स-संस्कृत-इंग्लिश
डिक्शनरी, पृष्ठ ७७६. (२) मधु= शूगर (शर्करा) आप्टे-रचित 'संस्कृत-इंग्लिश-डिक्शनरी'
पृष्ठ ७३७ (३) मधु (न.)= चीनी संस्कृत-शब्दार्थ-कौस्तुभ, पृष्ठ ६३७ । (४) मधु = शर्करा-वृहत्-हिन्दी-कोष पृष्ठ १००१ । (५) 'मधुनः शर्करायाश्चगुडस्यापिविशेषतः'
शब्दार्थ चिंतामणि, तृतीय भाग, पृष्ठ ५०६ (६) हेमचन्द्राचार्य ने 'शर्करा' के लिए 'मधुधूलि' शब्द भी लिखा है
__ अभिधान चिन्तामणि, मर्त्यकाण्ड, श्लोक ६७, पृष्ठ १६६ । 'मधु' शब्द का अर्थ केवल 'शहद' ही नहीं होता, बल्कि 'शर्करा' अथवा मीठी वस्तु भी होता है। अभिधान राजेन्द्र भाग ६ पृष्ठ २२६ में 'मह' का अर्थ दिया है 'अतिशायिशर्करादिमधुरद्रव्ये ।' इस प्रसंग का उल्लेख त्रिषष्टिशलाका पुरुषचरित्र, पर्व १०, (पत्र २०११) में जहाँ हेमचन्द्राचार्य ने किया है. वहाँ मधु के स्थान पर स्पष्ट 'सिता' लिखा है ___ 'चक्रे सितादिमिश्रेण परमानेन पारणाम् ।'--सर्ग ३, श्लोक ३५ । पत्र २०।१।
कोल्लाग सन्निवेश से भगवान् ने मोराकसन्निवेश की तरफ प्रस्थान किया। और वहाँ दुईज्जन्तक 'नाम के पाषंडस्थों के आश्रम में गये। उस आश्रम का १-दूइज्जन्तकाभिधानपाषण्डस्थो दूत्तिज्जन्तक एवोच्यते ।
-आवश्यक सूत्र हरिभद्रीय वृत्ति, विभाग १, पृष्ठ १६१-१ ।
-दूइज्जन्तक नाम के जो पाषण्डस्थ वे ही दूतिज्जन्तक कहे जाते हैं। दूइज्जन्त का अर्थ भ्रमणशील होता है । जो तापस सदा एक स्थान
पर न रहकर, घूमते रहते हैं, वे दूइज्जन्तक तापस कहलाते हैं। २-पाषण्डिनो गृहस्था--पाषण्डस्थ का मतलब है, गृहस्थ ।
सारांश-भ्रमणशील, स्त्री को साथ में रखनेवाले और किसी विद्या द्वारा अपनी आजीविका चलानेवाले तापसों का जो आश्रम है, उसका नाम है-दूइज्जन्तक पाषण्डस्थ आश्रम ।
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