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(१३४) जब गर्भ में थे, तो इन तीनों ज्ञानों से युक्त थे। एक दिन उनको विचार हुआ कि मेरे हिलने-डुलने से माता को कष्ट होता है। अत: उन्होंने गर्भ में हिलना-डुलना बन्द कर दिया और अंगोपांग का हिलाना-डुलाना बन्द करके वे अकम्पित हो गये। __आपके हिलना-डुलना बन्द कर देने से, माता त्रिशला को यह आशंका हुई कि, क्या किसी देवादिने मेरे गर्भ को हरण कर लिया है या मेरा गर्भ मर गया है या गल गया है; क्योंकि अब हिलता-डुलता नहीं है। माता त्रिशला को दुःखी देखकर सखियों ने उनसे पूछा-'आपका गर्भ तो कुशल है न ?" इस प्रश्न को सुनकर माता त्रिशला ने अपनी आशंका प्रकट की और मूछित होकर जमीन पर गिर पड़ीं। उपचार किया गया और वे शीघ्र ही चेतना युक्त हईं और चेतना युक्त होते ही चिन्ता से रुदन करने लगी। उनको इतनी चिन्तित देखकर वृद्धा नारियाँ शांति, मंगल, उपचार तथा मानताएं मानने लगी और ज्योतिषियों को बुलाकर उनसे प्रश्न पूछने लगीं। - रनवास के इस समाचार से राजा सिद्धार्थ भी चिंतित हो गये और उनके समस्त मन्त्री किंकर्तव्यविमूढ हो गये। इस प्रकार समस्त राज-भवन में राग-रंग समाप्त हो गया ।
इस प्रकार की दशा देखकर भगवान् ने सोचा-"मैंने तो माता के सुख के लिये यह सब किया; परन्तु उसका परिणाम विपरीत हुआ। अपने अवधिज्ञान से माता की मनोदशा जानकर, भगवान् महावीर ने अपने शरीर का एक भाग हिलाया। . तब त्रिशला क्षत्रियाणी अपने गर्भ की कुशलता जानकर हर्ष से पुलकित हो उठी और बोल उठी-“मेरा गर्भ हरा नहीं गया है और न तो मरा ही है। वह पहले के समान हिल-डुल भी रहा है।" और, स्वयं अपने को धिक्कारने लगी कि मैंने ऐसा अमंगल चिंतन क्यों किया ! रानी त्रिशला को हर्षित देखकर समस्त राजभवन में पुनः आनन्द की तरंगे व्याप्त हो गयीं।
यह घटना उस समय की है, जब भगवान् महावीर को गर्भ में आये ६ मास व्यतीत हो चुके थे। इस घटना में माता-पिता की चिन्ता को देखकर
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