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________________ (१२३) स्वप्न, देखे हैं। इससे अर्थ की प्राप्ति, भोग की प्राप्ति, पुत्र की प्राप्ति, सुख की प्राप्ति और यावत् राज्य की प्राप्ति होगी।" महाराज सिद्धार्थ ने संक्षेप में स्वप्नों का फल कहा। महाराज द्वारा अपने स्वप्नों का फल सुनकर, रानी त्रिशला बड़ी संतुष्ट हुई । इस प्रकार सिध्दार्थ के वचन को हृदय में स्मरण रखती हुई, महारानी त्रिशला वहाँ से उठकर अपने शयनागार में गयीं। और, मंगलकारी 'चौदह महास्वप्न निष्फल न हों, इस विचार से वह शेष रात जगती रहीं। ... - प्रातःकाल राजा सिद्धार्थ शैय्या-त्यागने के पश्चात् प्रातः-कृत्यों से मुक्त हो जहाँ अट्टनशाला (व्यायामशाला') थी, वहाँ गये। और नाना प्रकार के परिश्रम किये । (१) योग्य २-शस्त्रों का अभ्यास (२) वल्गन-कूदना (३) व्यामर्दन-एकदूसरे की भुजा आदि अंगों को मरोड़ना, (४) मल्लयुद्ध-कुश्ती करना और (५) करण'-पद्मासन आदि विविध आसन । इन व्यायामों को करने से वे जब परिश्रान्त हो गये और उनके सब अंग अत्यन्त थक गये; तब थकान को दूर करने के लिये विविध ओषधों से युक्त करके सो बार पकाये गए अथवा जिसको पकाने में सौ सुवर्ण-मोहरें लगें, ऐसे शतपाक-तेल से और जो हजार बार पकाया गया हो या जिसको पकाने में हजार स्वर्ण-मोहरें लगी हों, ऐसे सहस्रपाक-तेल आदि सुगंधित तेलों से मर्दन (मालिश) कराने लगे। मर्दन अत्यन्त गुणकारी, रस, रुधिर और धातुओं की वृद्धि करनेवाला, क्षुधाग्नि को दीप्त करनेवाला, · बल, मांस और उन्माद को बढ़ानेवाला, कामोद्दीपक, पुष्टिकारक और सब इन्द्रियों को सुखदायक था । अंगमर्दन करने वाले भी संपूर्ण अंगुलियों सहित सुकुमार हाथ-पैर वाले, मर्दन करने में प्रवीण और अन्य मर्दन करने वालों से विशेषज्ञ, बुद्धिमान तथा परिश्रम को जीतनेवाले थे। उन मर्दन करनेवालों ने अस्थि, मांस, त्वचा और रोंगटे इन चारों का सुखदायक मर्दन किया। १-कितने लोग अज्ञानवश व्यायाम का विरोध करते हैं । यह उनकी भूल है । जैन-आगमों, चरित्रों सभी से यह बात प्रमाणित है कि, तीर्थकर, चक्रवर्ती, वासुदेव, बल्देव, प्रति-वासुदेव तथा गृहस्थ सभी व्यायाम करते थे । 'अट्टन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001854
Book TitleTirthankar Mahavira Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashinath Sarak Mumbai
Publication Year1960
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, Story, N000, & N005
File Size20 MB
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