________________
(११८)
पागच्छति उपागत्य च तां मेघौघर सितगम्भीर मधुरतरशब्दां योजनपरिमंडलां सुघोषां घंटां त्रिःकृत्व उल्लालयतीति – ” ( पत्र ३६७-२ )
1
• डाक्टर उमाकान्त ने 'जर्नल आव इंडियन सोसायटी आव ओरियंटल - आर्ट', वाल्यूम १९, १६५२-५३ में 'हरिर्नंगमेसी' पर एक लेख लिखा है । उसमें उन्होंने बहुत-सी भ्रामक बातें लिखी हैं :
(१) पृष्ठ २२ पर उन्होंने लिखा है "चित्रों में उसे बकरी के सिर वाला दिखलाया गया है ।" और, उसके नोट में नोट में पता दिया है (अ) ब्राउन - लिखित 'मीनिएचर पेंन्टिग्स आव द कल्पसूत्र' चित्र १५ ( आ ) मुनिराज पुण्य विजय - सम्पादित पवित्र कल्पसूत्र' चित्र २२७ (इ) जैन चित्र - कल्पद्रुप चित्र १७६-१८७. (२) पृष्ठ १५ पर ब्राउन ने हरिर्नंग मेसि, का मुख घोड़े का अथवा हिरन का लिखा है । बकरी का मुख उमाकान्त ने अपने मन से चित्र देख कर कल्पना की है। पवित्र कल्पसूत्र में चित्र २२७ और उसके परिचय में कहीं भी बकरी का उल्लेख नहीं है ।
पृष्ठ २६ उसे हरिण के सिर वाला बताया गया है। पर, इसका कोई शास्त्रीय प्रमाण नहीं मिलता ।
डाक्टर उमाकान्त ने गर्भ-परिवर्तन की मूल कथा पर ही शंका प्रकट की है और उसे बाद का जोड़ा हुआ माना है । पर, हम इस संबन्ध में समस्त प्रमाण पहले दे आये हैं । उनकी आवृत्ति यहाँ नहीं करना चाहते । शाह ने स्थापना को बाद का सिद्ध करने के लिए मनमानी तिथियाँ भी निश्चित की हैं, जो किसी भी प्रकार सिद्ध नहीं हैं । उदाहरण के लिए आपने कल्पसूत्र को ५ वीं शताब्दी का लिखा है ! कल्पसूत्र और उसके रचयिता भद्रबाहुस्वामी के सम्बन्ध में स्वयं कुछ न कहकर मैं डाक्टर याकोबी का मत यहाँ दे देना चाहता हूँ
:--
"हेमचन्द्र से लेकर आधुनिक जैन- पंडित तक भद्रबाहु का निर्वारण महावीर स्वामी के निर्वाण से १७० वर्ष बाद मानते हैं ।
( कल्पसूत्र, भूमिका पृष्ठ १३ )
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org