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(१०६) होत्था...तओणं समणे भगवं महावीरे हियाणुकंपएणं' देवेणं जीयमेयंतिकट्ठ । जे से वासाणं तच्चे मासे पंचमे पक्खे आसोय बहुले तस्स णं आसोयबहुलस्स तेरसीपक्खेणं हत्थुत्तराहिं नक्खत्तेणं जोगोवगतेणं बासीतीहिं राइंदिरहिं वइक्कतेहिं तेसीतिमस्स राइंदियस्स परियाए वट्टमारणे दाहिणमाहणकुण्डपुरसंनिवेसाओ उत्तरखत्तिय कुण्डपुरसन्निवेसंसि नायाणं खत्तियाणं सिद्धत्थस्स खत्तियस्स कासवगुत्तस्स तिसलाए खत्तियाणीए वासिट्ठसगुत्ताए असुभाणं पुग्गलाणं अवहारं करेत्ता सुभाणं पुग्गलाणं पक्खेवं करित्ता कुच्छिसि गम्भं साहरइ । जे वि य तिसलाए खत्तियाणीए कुच्छिसि गब्भे तंपिय दाहिणमाहणकुण्डपुर संनिवेसंसि उसमदत्तस्स माहणस्स कोडालसगोत्तस देवाणंदाए माहणीए जालंधरायणस गुत्ताए कुच्छिंसि गम्भं साहरइ..."
-श्री आचाराङ्ग सूत्र-द्वितीय श्रुतस्कन्ध, भावनाधिकार पत्र ३८८-१-२ .....जम्बूद्वीप नामक द्वीप में भरतक्षेत्र के दक्षिणार्थ भरत में स्थित ब्राह्मण कुंडपुर सन्निवेश में कोडाल गोत्रीया ऋषभदत्त ब्राह्मणी की (पत्नी) जालन्धर गोत्रीया देवानंदा ब्राह्मणी की कुक्षि में सिंह की तरह भगवान् महावीर अवतीर्ण हुए। उस समय भगवान् तीन ज्ञान से युक्त थे। हितकर कर्म को करने वाले और भक्त (हिरणेगमेसी देव ने) यह विचार कर कि ऐसा मेरा व्यवहार है, भगवान् महावीर को वर्षा के तीसरे महीने में, पाँचवे पक्ष में, आश्विन कृष्ण १३ को जब चन्द्रमा उत्तरा-फाल्गुनी नक्षत्र में था, बयासी रात-दिन व्यतीत होने पर, ८३-३ दिन को दक्षिण ब्राह्मण कुण्डपुर सन्निवेश से उत्तर क्षत्रिय कुण्डपुर सन्निवेश में ज्ञात-क्षत्रिय काश्यपगोत्रीय सिद्धार्थ क्षत्रिय की वशिष्ठगोत्रीया क्षत्रियाणी त्रिशला के अशुभ पुद्गालों को दूर कर और शुभ पुद्गलों का प्रक्षेप करके कुक्षिमें गर्भ को रखा । और; १-'हिताणुकंपएणं' हितः शक्रस्य आत्मनश्च अनुकम्पको भगवत :
-पवित्र कल्पसूत्र टिप्पनकम्, पृष्ठ ५. हिताणुकं० हितं अप्पाणं सक्कस्स य, अणुकंपओ तित्थगरस्स....
-आचारांगचूर्णिः, पत्र ३७५ ।
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