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________________ (६२) (७) उन (सिद्धार्थ ) की पत्नी का नाम त्रिशला था । उनका भी उल्लेख क्षत्रियारगी के रूप में किया गया है । जहाँ तक मुझे स्मरण है उन्हें देवी-रूप में कहीं नहीं लिखा गया है । -डाक्टर याकोबी का उपर्युक्त लेख । (८) (क) सन्निवेश से तात्पर्य मुहल्ले से है । - डाक्टर हारनेल का उपर्युक्त लेख । (ख) कुण्डग्राम को आचाराङ्ग में एक 'सन्निवेश' रूप में लिखा गया है, जिसका अर्थ टीकाकारों ने 'यात्री अथवा काफिले ( सार्थवाह) का विश्रामस्थान' किया है । - डाक्टर याकोबी का लेख । , (६) 'उवासगदसाओ' में सूत्र ७७ और ७८ में वाणियागाम के प्रकरण मैं प्रत्युक्त 'उच्चनीचमच्झिमकुलाई' – ऊँच नीच और मध्यमवर्ग वालाविशेषण दुल्व ( राहिल- लिखित 'लाइफ आव बुद्ध,' पृष्ठ ६२ ) में आये हुए निम्नलिखित वर्णन से मिलता है - " वैशाली के तीन विभाग थे, जिसमें पहले विभाग में सुवर्ण कलश वाले ७००० घर थे, बीच के विभाग में रजतकलश वाले १४००० घर थे और अन्तिम विभाग में ताम्रकलश वाले २१००० घर थे । इन विभागों में ऊँच, मध्यम और नीच वर्ग के लोग क्रम से रहते थे । - डाक्टर हारनेल का उपर्युक्त लेख । परन्तु, डा० हारनेल और डा० याकोबी दोनों की ही उपर्युक्त स्थापनाएँ शास्त्रों से मेल नहीं खातीं । शास्त्रों के प्रमाणों को यहाँ उपस्थित करके, हम उपयुक्त टिप्पणियों की छान-बीन करेंगे । (१) 'त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्रम्' में भगवान् के वैशाली से वाणिज्यग्राम की ओर जाने का उल्लेख है । इससे प्रकट होता है कि, दोनों पृथकपृथक नगर थे । नाथोऽपि सिद्धार्थंपुराद् वैशालीं नगरीं ययौ । शंखः पितृसुहृत्ताभ्यानर्च गणराट् प्रभुम् ॥ १३८ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001854
Book TitleTirthankar Mahavira Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashinath Sarak Mumbai
Publication Year1960
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, Story, N000, & N005
File Size20 MB
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