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________________ (८८) क्षत्रियकुण्ड के वज्जी देश में होनेवाली मेरी स्थापना की पुष्टि शास्त्रों से, ऐतिहासिक प्रमाणों से और पुरातत्त्व विभाग के प्रमाणों से होती है। इन प्रमाणों द्वारा भगवान् महावीर के जन्मस्थान की सिद्धि कर चुकने के बाद, यह कहने की कोई आवश्यकता नहीं रह जाती कि, लिछुआड़ के निकट स्थित क्षत्रियकुण्ड, जो आजकल भगवान महावीर की जन्मभूमि मानी जाती है, स्थापना-तीर्थ मात्र है-भगवान् का वास्तविक जन्मस्थान नहीं है । और, जो लोग यह कहकर कि, भगवान् अर्द्धमागधी बोलते थे, उन्हें मगधवासी सिद्ध करने की चेष्टा करते हैं, वे नितान्त भ्रांति पर है; क्योंकि अर्द्धमागधी तो उस समय सम्पूर्ण २५॥ आर्यदेशों की भाषा थी। सिद्ध है कि, सभी देशों में अर्द्धमागधी-भाषा और ब्राह्मी-लिपि प्रचलित थी। बुद्ध शाक्य-देश के वासी थे; पर वे भी मागधी में ही उपदेश करते थे।' अतः भाषा को आधार मानकर इन शास्त्रीय तथा ऐतिहासिक प्रयत्नों को गलत सिद्ध करने की चेष्टा कुचेष्टा मात्र कही जायेगी। शास्त्रों में भगवान को विशाल राजा के कुल का कहा गया है। विशाल राजा वैशाली के राजा थे। अत: भगवान को वैशाली से हटाकर अंग से सम्बद्ध करना पूर्णतः भ्रामक है। लिछुआड़ से क्षत्रियकुंड जाने का मार्ग भी पहले नहीं था। पहले लोग मथुरापुर होकर क्षत्रियकुंड जाया करते थे। यह मार्ग तो १८७४ ई० में मुर्शिदाबाद वाले रायबहादुर धनपतसिंह के (लिछुआड़ में) मन्दिर और धर्मशाला बनवाने के बाद बना । लिच्छवियों की राजधानी वैशाली थी, लिछुआड़ नहीं। लिछुआड़ को लिच्छिवियों से सम्बद्ध करना सिद्ध-इतिहास के पूर्णतः विरुद्ध है। लिछुआड़ १- 'डिक्शनरी आव पाली प्रापर नेम्स', भाग २, पृष्ठ ४०४. २- प्राचीन तीर्थमाला संग्रह, भाग १ में, संकलित (१७५० वि०) सौभाग्य विजय-रचित तीर्थमाला । ३- मुंगेर जिला गजेटियर, पृष्ठ २२८ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001854
Book TitleTirthankar Mahavira Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashinath Sarak Mumbai
Publication Year1960
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, Story, N000, & N005
File Size20 MB
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