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(७०) मुद्गलायन ने भी लिच्छिवियों को इसी रूप में सम्बोधित किया था ।' वैशाली के लिच्छिवि-वंश की ही भगवान महावीर की माता थीं। 'कल्पसूत्र' में उल्लेख आया है-"महावीरस्स माया वासिट्ठसगुत्तेएं"२ । इसी प्रकार का उल्लेख 'आचाराङ्ग' में भी है।'
'महावस्तु' में भी आता है-"वैशालकानां (वैशालिकानां) लिच्छिवीनां वचनेन" । इससे स्पष्ट है कि, बिशाल राजा के कुल वाले वैशालिक और लिच्छिवि दोनों ही समानार्थी शब्द थे और उन दोनों में कोई अन्तर नहीं था । महाराज विशाल क्षत्रिय थे और उनके पूर्वज अयोध्या से आये थे। ( देखिये पृष्ठ ६२ ) अतः किसी भी रूप में लिच्छिवियों को विदेशी नहीं माना जा सकता।
बसाढ़ मुजफ्फरपुर जिले के रत्ती परगने में है। यहाँ जथरिया नामक एक जाति बसती है। राहुल सांकृत्यायन की कल्पना है कि, यह 'जथरिया' शब्द 'ज्ञातृक' का ही विकृत रूप है। इस 'ज्ञातृ' कुल में पैदा होने के कारण महावीर 'नात-पुत्र' अथवा 'ज्ञातपुत्र' के नाम से विख्यात हुए। राहुल सांकृत्यायन की यह भी कल्पना है कि यह रत्ती' शब्द 'ज्ञातृकों' की 'नादिका' का विकृत रूप है। उसका रूप-परिवर्तन राहुलजीने इस रूप में दिया हैनादिका=ज्ञातृका=नातिका लातिका रत्तिका=रत्ती (बुद्धचा, पृष्ठ ४६३) वस्तुतः ये 'ज्ञात' इस रत्ती परगने के ही राजा थे।
बुद्ध के समय में वैशाली गंगा से ३ योजन (२४ मील) की दूरी पर थी और बुद्ध ३ दिनों में गंगा-तट से वैशाली पहुँचे थे। युआन च्वाङ ने गंगा से (१) 'लाइफ आव बुद्ध' राकहिल-रचित, पृष्ठ १७ । (२) कल्पसूत्र, १०६ । (३) आचारङ्ग सूत्र । श्रुत्स्कंध २, अध्याय १५, सूत्र ४ । (४) महावस्तु, सेनार्ट-सम्पादित, भाग १।२५४। (५) बुद्धचर्या, पृष्ठ १०४, ४६३ । (६) "डिक्शनरी आव पाली प्रामर नेम्स,' भाग २, पृष्ठ ६४१ ।
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