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________________ (६४) -अर्थात् धन-धान्य से भरपूर और विशाल वैशाली नगरी थी । उस पर चेटक का शासन था। २-तए णं से कूणिए राया तेत्तीसाए दन्तिसहस्सेहिं तेत्तीसाए आससहस्से हिं तेत्तीसाए रहसहस्सेहिं तेत्तीसाए मगुस्सकोडीहिं सद्धिं संपरिबुडे सव्वड़ढिए जाव रवेणं सुभेहि वसईहिं सुभेहिं पायरासेहिं नाइविगिठेहिं अन्तरावासेहिं वसमाणे वसमाणे अंगजणवयस्समझ मज्झणं जेणेव विदेहे जणवए, जेणेव वेसाली नयरी, तेणेव पहारेत्थ गमणाए (') --- अर्थात् तब राजा कूणीय ३३ हजार हाथियों, ३३ हजार घोड़ों, ३३ हजार रथों, और ३३ करोड़ मनुष्यों सहित, बड़े ठाठ-बाठ से थोड़ी-थोड़ी दूर पर ठहर कर कलेवा आदि करता हुआ अंग (२) जनपद के बीचो-बीच में से निकल कर विदेह जनपद में होता हुआ वैशाली नगरी की ओर बढ़ा। वैशाली अथवा आधुनिक बसाढ़ चाहे राजा विशाल द्वारा बसाये जाने के कारण इसका नाम विशाला अथवा वैशाली पड़ी हो, अथवा दीवारों को तीन बार हटा कर विशाल किये जाने के कारण इसका नाम वैशाली रखा गया हो; पर यह सिद्ध है कि, प्राचीन काल में 'वैशाली' एक मुख्य नगरी थी। आज कल यह स्थान १-निरयावलियाओ, पृष्ठ २६ । २-डा. त्रिभुवनदास ने अपनी पुस्तक 'प्राचीन भारतवर्ष' में अङ्ग देश को मध्य भारत बताया है। इसी पुस्तक के प्रथम भाग (पृष्ठ ४६) के नकशे के अनुसार यदि कूरिणय राजा के मार्ग को निर्धारित करना चाहें, तो राजा कूणिय को मगध देश के बीच में से होकर जाना पड़ा होगा। पर, ऊपर दिये 'निरयावलियो' के प्रमाए के अनुसार अङ्गदेश से विदेह जाने के लिए बीच में कोई देश नहीं पड़ता। अतः निश्चित है कि, डाक्टर साहब की स्थापना केवल कल्पना मात्र है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001854
Book TitleTirthankar Mahavira Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashinath Sarak Mumbai
Publication Year1960
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, Story, N000, & N005
File Size20 MB
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