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(५५)
(क) जैन- दृष्टिकोण
जैनों के मतानुसार 'विदेह' एक जनपद था और उसकी राजधानी मिथिला थी । "
१ - " इहेव भार वाले पुग्वदेसे विदेहा नाम जणवओ, संपइ काले तीर हुत्तिदेसो त्ति भण्इ । जत्थ पइगेहं महुरमंजुलफलभारोणयाणि कयलीवणाणि दोसंति । पहिया य चिविडयाणि दुद्धसिद्धाणि पायसं च भुर्जीत । पए पए वावीकूवतलायनईओ अ महुरोदगा, पागयजणा वि सक्कयभासविसारया अरोगसत्यपसत्य अइ निउणा य जणा । तत्थ रिद्धित्थमिअसमिद्धा मिहिला नाम नयरी हुत्था | संपर्यं जगइ त्ति पसिद्धा । एयाए नाइदूरे जरणयमहारायस्स भाउगो कणयस्स निवार द्वारणं करणइपुरं वट्टइ ।
इसी भारतवर्ष में पूर्व देश में विदेह नाम का देश है, जो ( ग्रन्थकार के समय - विक्रमी १४ - वीं शताब्दी -- में) तिरहुत के नाम से प्रसिद्ध है । जहाँ प्रत्येक घर में मीठे और सुन्दर फलों के भार से नमें हुए केले के वन दृष्टिगोचर होते हैं । पथिक दूध में पकाये हुए चिवड़े और खीर खाते हैं । स्थानस्थान पर मीठे पानी वाले कुएँ, बावड़ी, तालाब और नदियाँ हैं । सामान्य जन भी संस्कृतज्ञ तथा शास्त्र - प्रशास्त्र में प्रवीए हैं और अनेक ऋद्धियों से समृद्ध मिथिलानाम की नगरी है । इस समय 'जगई' नाम से प्रसिद्ध है । उसके समीप जनक महाराजा के भाई कनक का निवास स्थान कनकीपुर है । २ - 'मिडिल विदेहा य' - मिथिला नगरी विदेहा जनपदः । *
इसी प्रकार विदेह देश के अनेक उल्लेख प्रज्ञापना- सूत्र सटीक, सूत्रकृताङ्ग टीका, त्रिषष्टिशालाका पुरुष- चरित्र ( पर्व २ ) इत्यादि ग्रन्थों में मिलते है । ( १ ) इसी में मल्लिनाथ भगवान् श्री नेमिनाथ भगवान्, अकम्पित गणधर और नमि नामके प्रत्येकबुद्ध हुए हैं । यहाँ महावीर स्वामी ने ६ चौमासे किये थे |
(२) आज भी उसे 'जगती' कहते हैं ।
(३) विविधतीर्थकल्प, पृष्ठ ३२ ।
( ४ ) प्रवचन सारोद्धार वृत्ति सहित पृष्ठ ४४६
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