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________________ १.७० ] जातियों की संख्या ६५ प्राक्तनप्रयोगे शब्दे कृतकत्वं संदिग्धं ताल्वादीनां कारणत्वं व्यञ्जकत्वं वेति वादिविप्रतिपत्तेः संदेहादिति । इति जातयः॥ [६९. जातिसंख्याविचारः] वर्ये साध्यस्य संभूतेः पृथग् नास्य निरूपणम् । प्रत्युदाहरणं चापि साधर्म्यं लब्धवृत्तिमत् ॥ १२ ॥ अर्थापत्युपपत्ती चाभिन्ने प्रकरणादिह । अनित्यत्वसमाजातिविशेषान्न भिद्यते ॥ १३॥ इति पञ्चापसारेणासिद्धाधुपचयेन च । जातयो विंशतिस्ताः स्युः पुनरुक्ति विना पुनः ॥ १४ ॥ [७०. निग्रहस्थानानि] वादिप्रतिवादिनोः अन्यतरस्य पराजयनिमित्तं निग्रहस्थानम् । प्रति शाहानिः प्रतिज्ञान्तरं प्रतिज्ञाविरोधः प्रतिज्ञासंन्यासः हेत्वन्तरम् अर्थान्तरंनिरर्थकम् अविज्ञातार्थम् अपार्थकम् अप्राप्तकालं हीनम् अधिकम् पुनरु कि यहां प्रस्तुत हेतु में कोई स्पष्ट दोप न बतला कर केवल वादियों के मतभेद पर आधारित संदेह को महत्त्व दिया है)। इस प्रकार जातियों का वर्णन पूरा हुआ। जातियों की संख्या ___वर्ण्यसमा जाति में साध्यसमा जाति का अन्तर्भाव होता है अतः उस का पृथक वर्णन नही करना चाहिए; प्रत्युदाहरण जाति का समावेश साधर्म्यसमा जाति में होता है; अर्थापत्तिसमा तथा उपपत्तिसमा जातियां प्रकरणसमा जाति से भिन्न नही हैं तथा अनित्यसमा जाति अविशेषसमा जाति से भिन्न नही है । इस प्रकार पुनरुक्ति छोडकर पांच जातियों को कम करने से तथा असिद्धादिसमा जाति का अधिक समावेश करने से जातियोंकी संख्या बीस होती है। निग्रहस्थान वादी और प्रतिवादी में से किसी एक के पराजय का जो कारण होता है उसे निग्रहस्थान कहते हैं । प्रतिज्ञाहानि से हेत्वाभास तक (जो नाम मूल Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001853
Book TitlePramapramey
Original Sutra AuthorBhavsen Traivaidya
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherGulabchand Hirachand Doshi
Publication Year1966
Total Pages184
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Epistemology, & Philosophy
File Size10 MB
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