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________________ ५४ प्रमाप्रमेयम् [१.५३[५३. विकल्पसमा] दृष्टान्ते धर्मविकल्पप्रदर्शनेन दान्तिके धर्मान्तरापादनं विकल्पसमा जातिः। अनित्यः शब्दः कृतकत्वात् घटवदित्युक्ते कृतकत्वाविशेखेऽपि किंचिन्मूत दृष्टं यथा घटादि किंचिदमूर्त दृष्टं यथा रूपादि तद्वत् कृतकत्वाविशेषेऽपि पटादिकमनित्यं शब्दादि नित्यं भवेदित्यादि विकल्प. समा जातिः॥ [५४. असिद्धादिसमा] हेतोः साध्यसद्भावाभावोभयधर्मविकल्पनया असिद्धविरुद्धानैका. न्तिकतापादनम् असिद्धादिसमा जातिः। अनित्यः शब्दः कृतकत्वात् घटवदित्युक्ते कृतकत्वादयं हेतुः साध्यसद्भावधर्मः अभावधर्म उभयविकल्पसमा जाति __ दृष्टान्त में गुणधों का विकल्प बतला कर दान्तिक (दृष्टान्त पर आधारित साध्य ) में दूसरे गुणधर्म की कल्पना करना विकल्पसमा जाति है। जैसे - शब्द अनित्य है क्यों कि वह कृतक है जैसे घट इस अनुमान में यह कहना कि समान रूप से कृतक होने पर भी कुछ वस्तुएं मूर्त होती हैं जैसे घट तथा कुछ अमूर्त होती हैं जैसे रूप, उसी प्रकार समान रूप से कृतक होने पर भी वस्त्र आदि को अनित्य तथा शब्द आदि को नित्य माना जा सकता है (यहां दृष्टान्त में मूर्तत्व तथा अमूर्तत्व का विकल्प बतला कर दार्टान्तिक अर्थात शब्द में नित्यत्व की कल्पना की गई है अतः यह विकल्पसमा जाति है)। असिद्धादि समा जाति हेतु साध्य में है अथवा उसका अभाव है अथवा दोनों हैं इस प्रकार विकल्प कर के हेतु को असिद्ध, विरुद्ध अथवा अनैकान्तिक बतलाना यह असिद्धादिसमा जाति होती हैं । उदाहरणार्थ-शब्द अनित्य है क्यों कि वह कृतक है जैसे घट इस अनुमान के प्रस्तुत करने पर यह कहना कि यहां कृतक होना इस हेतु का साध्य में अस्तित्व है, अभाव है, अथवा अस्तित्व तथा अभाव दोनों हैं, इन में पहला पक्ष स्वीकार करें (हेतु का साध्य में सद्भाव माने) तो अभी साध्य का अस्तित्व ही सिद्ध नहीं है अत: उस के गुणधर्मरूप हेतु को भी असिद्ध Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001853
Book TitlePramapramey
Original Sutra AuthorBhavsen Traivaidya
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherGulabchand Hirachand Doshi
Publication Year1966
Total Pages184
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Epistemology, & Philosophy
File Size10 MB
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