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________________ प्रमाप्रमेयम् [१.३५ - अमूर्तत्वमस्ति, मनसि नास्ति । विपक्षे द्रव्यरूपे आत्माकाशेऽमूर्तत्वमस्तिघटपटानी नास्ति । सपक्षे अद्रव्यरूपेषु अभावचतुष्टयेषु अमर्तत्वं सर्वत्र व्याप्तम् । रूपः विपद व्यापकः पक्षकदेशत्तिः यथा-न द्रव्याणि दिक्कालात्माकाशमनांसि आकाश विशेषगुण रहितत्वात् । सपक्षे अद्रव्यरूपे असावचतुष्टये आकाश विशेषगुणरहितत्वं सर्वत्र व्यापकम् । विपक्षे द्रव्यरूऐ बुघटपटादिएच दगुणरहित सर्वत्र व्याहम् । पीतेपु सर्वेषु दिक्कालात्ममनःसु आकाश विशेषगुणरहितत्वमरित, आकादो तास्ति । [३६. अकिंचित्करः। सिद्धे साध्यं हेतुर्न विचित् करोतीति अकिचित्करः । तैजसः प्रदीपः उपणस्पर्शवत्वात् पावकवत् । रहनेवाले. अनैकान्तिक का उदाहरण -- दिशा, काल और मन द्रव्य नहीं हैं क्यों कि वे अमूर्त हैं । यहां पक्ष में शामिल दिशा और काल में अमूर्त होना यह हेतु है किन्तु मन में नहीं है। जो द्रव्य हैं उन में अर्थात विपक्ष में -घटपट आदि में यह हेतु नही है, आत्मा, आकाश आदि में यह अमूर्त होना विद्यमान है । जो द्रव्य नहीं हैं ऐसे चार प्रकार के अभावों में अर्थात सपक्ष में अमूर्त होना यह हेतु सर्वत्र व्याप्त है । सपक्ष और विपक्ष में सर्वत्र तथा. पंक्ष के एक भाग में रहनेवाले अनैकान्तिक का उदाहरण - दिशा, काल, आत्मा, आकाश, मन ये द्रव्य नही हैं क्यों कि ये आकाश के विशेष गुण से रहित हैं। यहां जो द्रव्य नही हैं ऐसे चार अभावों में अर्थात सपक्ष में हेतु अर्थात आकाश के विशेष गुण से रहित होना सर्वत्र व्याप्त है । विपक्ष में जो द्रव्य हैं उन घट पट आदि में भी यह हेतु अर्थात शब्द गुण से रहित होना सत्र व्याप्त है । पक्ष में शामिल दिशा, आत्मा, काल मन इन में यह. हेतु है किन्तु आकाश में यह हेतु नही है । अकिलित्कर हेत्वाभास जहां साध्य पहले ही सिद्ध हो वहां हेतु कुछ भी नहीं करता अतः उसे अकिचित्कर कहते हैं। जैसे -- दीपक तेज से बना है क्यों कि वह अग्नि के समा- उष्ण स्पर्श से युक्त है ( वहां दीपक का तैजस होना पहले ही सद्ध है अतः उस के लिए उष्णस्पर्शयुक्त होना आदि हेतु व्यर्थ हैं - उन्हें अकिंचिरकर कहना चाहिए)। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001853
Book TitlePramapramey
Original Sutra AuthorBhavsen Traivaidya
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherGulabchand Hirachand Doshi
Publication Year1966
Total Pages184
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Epistemology, & Philosophy
File Size10 MB
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