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---१.२८]
केवलव्यतिरेकी अनुमान हेतुः स्यात्। विपक्षग्रहणसंभवे केवलान्वयित्वाभावात् कस्याप्रामाण्यं प्रसाध्येत, न कस्यापि । अपि च व्यावृत्तिर्नाम अभावः,रहितत्वमपि प्रतिषेध एव । तथा च प्राभाकरपक्षे अभावप्रतियोगिप्रतिषेधाभावात् स्वरूपासिद्धो हेत्वाभासः । विपक्षाव्यावृत्तिरहितत्वं नाम विपक्षस्वरूपमेव । तदत्र केवलान्वयिनि नास्तीति स्वरूपासिद्धो हेतुः स्यात् । तस्मात् केवलान्वयि प्रमाणं व्याप्तिमत्पक्षधर्मत्वात् धूमानुमानवदिति स्थितम् ।। [२८. केवलव्यतिरेकि अनुमानम् ]
सपक्षरहितः विपक्षसहितः केवलव्यतिरेकी । आत्मा चेतनः ज्ञात
शंकाकार मीमांसक का प्रश्न है कि केवलान्वयी हेतु प्रमाण नही होता क्यों कि इस में विपक्ष में अभाव यह गुण नही है, अनैकान्तिक हेत्वाभास में भी विपक्ष में अभाव यह गुण नही होता इसीलिए वह हेत्वाभास होता है अतः इस केवलान्वयी हेतु को भी प्रमाण नही मान सकते। किन्तु इस आक्षेप में विपक्ष में अभाव न होना यह जो हेतु है यह अज्ञातासिद्ध है (इस का अस्तित्व सिद्ध नहीं हुआ है ) क्यों कि इस केवलान्वयी हेतु में अमुक विपक्ष है इस तरह का ग्रहण तथा उस में इस हेतु का अभाव है इस प्रकार का स्मरण नहीं हो सकता इसलिए विपक्ष में अभाव न होने का ज्ञान ही नही हो सकता । यदि विपक्ष के अस्तित्व का ग्रहण हो सके तो यह हेतु केवलान्वयी ही नहीं रहेगा अत: अप्रमाण किसे सिद्ध करेंगे ? प्राभाकर मीमांसकों के पक्ष में भी विपक्ष में अभाव न होना यह आक्षेप स्वरूपासिद्ध है (उस का स्वरूप सिद्ध नहीं है ) क्यों कि उन के मतानुसार व्यावृत्ति का अर्थ अभाव है तथा रहित होने का अर्थ भी अभाव ही है । प्राभाकर मीमांसकों के मतानुसार विपक्ष में व्यावृत्ति के अभाव का अर्थ है विपक्ष का स्वरूप । और इस केवलान्वयी हेतु में विपक्ष ही नही है इसलिए विपक्ष में अभाव नही है यह कहना स्वरूपासिद्ध हो जाता है । इसलिए धुंए से अग्नि के अनुमान के समान ही केवलान्वयी हेतु भी प्रमाणभूत होता है क्यों कि वह व्याप्ति से युक्त तथा पक्ष का धर्म है यह निष्कर्ष स्थिर हुआ । केवलव्यतिरेकी अनुमान
जिस हेतु में विपक्ष होता है किन्तु सपक्ष नही होता उसे केवलव्यति
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