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________________ -१.२६] अन्वयव्यतिरेकी अनुमान काकस्य काात् धवलः प्रासादः इत्यादेरपि गमकत्वं स्यात् । अथ विपक्षेऽसत्त्वात् व्याप्तिनिश्चय इति चेत् केवलव्यतिरेकानुमानं तत्, नार्थापत्तिः। तस्याप्यपक्षधर्मत्वे अगमकत्वमेव । पक्षे सपक्षेऽप्यविद्यमानो हेतुः स्वसाध्यं क्व प्रसाधयेत्, न क्वापि । तर्हि नदीपूरवृष्टयादीनां गम्यगमकभावः कथमिति चेत् वीतः नदीपूरः वृष्टिपूर्वका विशिष्ट पूरत्वात् संप्रतिपन्नपूरवत् वीतः पुमान् ब्राह्मण एव ब्राह्मणमातापितृजन्यत्वात् संप्रतिपन्नब्राह्मणवत् इत्यादिकुशलप्रयोगादिति ब्रूमः । तस्मात् व्याप्तिमान् पक्षधर्म एव सम्यग् हेतुर्भवति । [२६. अन्वयव्यतिरेकि अनुमानम् ] स हेतुः अन्वयव्यतिरेकी केवलान्वयी केवलव्यतिरेकी इति त्रिधा। धर्म नही वह हेतु भी यदि साध्य का बोध करा सके तो 'महल सफेद है क्यों कि कौआ काला है ' ऐसे हेतु भी साध्य के बोधक सिद्ध होंगे विपक्ष में अभाव होने से इस हेतु की व्याप्ति का निश्चय होता है यह कथन भी उचित नही क्यों कि ऐसी स्थिति में उसे केवलव्यतिरेकी अनुमान ही कहेंगे, व्याप्तिसमर्थक अर्थापत्ति नही । ऐसा हेतु भी (जिस का विपक्ष में अभाव है) यदि पक्ष का धर्म नही है तो वह साध्य का बोध नहीं करा सकता । जो हेतु पक्ष में और सपक्ष में भी न हो वह साध्य को कहां सिद्ध करेगा-अर्थात कहीं भी सिद्ध नहीं कर सकेगा। फिर नदी की बाढ से वृष्टि का बोध किस तरह होता है इस प्रश्न का उत्तर यह है कि यहां कुशल व्यक्ति इस प्रकार अनुमान का प्रयोग करते हैं - यह नदी की बाढ वृष्टिपूर्वक होती है क्यों कि यह विशिष्ट बाढ है जैसे पहले देखी हुई बाढ ( यहां नदी की बाढ इस पक्ष में वृष्टिपूर्वक होना यह साध्य है तथा विशिष्ट बाढ होना यह हेतु यहां पक्ष का ही धर्म है)। इसी प्रकार यह पुरुष ब्राह्मण है क्योंकि यह ब्राह्मण मातापिता से उत्पन्न हुआ है जैसे पहले देखे हुए ब्राह्मण ( यहां यह पुरुष इस पक्ष में ब्राह्मण माता-पिता से उत्पन्न होना यह हेतु विद्यमान है अतः उस से ब्राह्मण होना यह साध्य सिद्ध होता है)। इसलिए व्याप्ति से युक्त पक्ष का धर्म ही योग्य हेतु होता है । अन्वयव्यतिरेकी अनुमान हेतु के तीन प्रकार हैं - अन्वयव्यतिरेकी, केवलान्वयी तथा केवल Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001853
Book TitlePramapramey
Original Sutra AuthorBhavsen Traivaidya
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherGulabchand Hirachand Doshi
Publication Year1966
Total Pages184
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Epistemology, & Philosophy
File Size10 MB
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