SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 40
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ -१.२४] हेतु का पक्षधर्मत्व धर्म एव सम्यग् हेतुः । तर्हि शकटोदयकृत्तिकोदयानां गभ्यगमकभावः कथमिति चेत् वीतः कृत्तिकोदयः मुहूतान्ते शकटोदयवान् कृत्तिकोदयत्वात् प्राक् परिदृष्टवृत्ति कोदयवत् इत्यादि कुशलप्रयोगादिति ब्रूमः ॥ [ २४. हेतोः अपक्षधर्मत्वनिषेधः ] ननु नदीपूरोऽप्यधोदेशे वृत्तः सन्नुपरिस्थिताम् । नियम्यो गमयत्येव वृत्तां वृष्टिं नियामिकाम् ॥ ३॥ पित्रोश्च ब्राह्मणत्वेन पुत्रब्राह्मणतानुमा । सर्वलोकप्रसिद्धा न पक्षधर्ममपेक्षते ॥ ४॥ उपरि वृष्टो देवः अधोदेशे नदीपूरस्यान्यथानुपपत्तेः पुत्रः ब्राह्मणः मातापित्रोः ब्राह्मण्यस्यान्यथानुपपत्तेः, इत्यादेरपक्षधर्मस्यापि गमकत्वमस्ति इति चेन्न । अपक्षधर्मस्य कल्प्यस्य गमकत्वानुपपत्तेः । कुत इति चेत् पक्षे १९ का उदय यह पक्ष हुआ, इस में कृत्तिका का उदय होना यह हेतु विद्यमान है अतः उससे टिका के बाद रोहिणी के उदय से युक्त होना यह साध्य सिद्ध होता है ) । जो पक्ष का धर्म नही वह हेतु नही होता यहां प्रश्न होता है कि नदी में बाढ नीचे के प्रदेश में होती है किन्तु उस नियम्य ( साधन ) से ऊपर के प्रदेश में हुई नियामिका ( साध्य ) भारी वर्षा का अनुमान होता ही है (यद्यपि यहां बाढ यह हेतु ऊपर का प्रदेश इस पक्ष में नही होता ) । इसी प्रकार मातापिता के ब्राह्मण होने से पुत्र के ब्राह्मण होने का अनुमान होता है यह सब लोगों में प्रसिद्ध है, यहां भी ( मातापिता का ब्राह्मण होना यह हेतु पुत्र इस पक्ष में नही है अतः ) हेतु में पक्षधर्म होना जरूरी नही है । ऊपर के प्रदेश में वर्षा हुई है, अन्यथा नीचे के प्रदेश में नदी में बाढ आई है इस की उपपत्ति नहीं लगती; पुत्र ब्राह्मण है क्यों कि उस के माता-पिता ब्राह्मण होने से वह अन्यथा नही हो सकता इत्यादि अनुमानों में जो हेतु पक्ष का धर्म नही है वह भी साध्य का बोध कराता है । किन्तु शंकाकार का यह कथन ठीक नहीं है । जो पक्ष का धर्म नही है वह हेतु कल्पित होगा अतः वह साध्य का बोध कराये यह संभव नही है | ऐसा क्यों है इस प्रश्न का उत्तर है कि पक्ष में हेतु का अभाव है Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001853
Book TitlePramapramey
Original Sutra AuthorBhavsen Traivaidya
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherGulabchand Hirachand Doshi
Publication Year1966
Total Pages184
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Epistemology, & Philosophy
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy