________________
-- १.२ २] हेतु पक्षका धर्म होता है नान्यथा, अतिप्रसंगात्। तस्य साध्याविनाभावाभावात् असिद्धत्वे विरुद्धानकान्तिकाकिंचित्कराणामपि असिद्धत्वमेवेति एक एव हेत्वाभासः स्यात् । तथा च चत्वारो हेत्वाभासाः असिद्धविरुद्धानकान्तिकाकिंचित्कराः इत्यसंगतं स्यात् । तस्मात् हेतोः पक्षधर्मत्वे सत्येव विवक्षितपक्षे प्रकृतसाध्यप्रसाधकत्वम् नाविनाभावमात्रात् । अन्यथा पर्वतोऽ. ग्निमान् महानसस्य धूमवत्वात् इत्यादेरपि साध्ये प्रसाधकत्वं स्यात् तस्यापि साध्यविनाभावसभावात् , न चैवं, ततः पक्षधर्म एव सम्यग हेतुरित्यङ्गीकर्तव्यः॥ चाक्षुष ( आंखों से देखा जानेवाला ) है यह हेतु अविद्यमान सत्ताक है ( इस हेतु का अस्तित्व ही नहीं है क्यों कि शब्द आंखों से नही देखा जाता ) यह शंकाकार ने स्वयं कहा है (इसी प्रकार जो हेतु पक्ष का धर्म नही होता वह असिद्ध होता है)। ऐसा अनुमान प्रयोग भी कर सकते हैं - ये हेतु (जो पक्ष के धर्म नहीं हैं ) असिद्ध हैं क्यों कि वे पक्ष के धर्म नही हैं जैसे शब्द का चाक्षुष होना । आंखों से देखा जाना दूसरे पदार्थों में तो पाया जाता है किन्तु पक्ष (शब्द ) में नहीं है इसी लिए उसे असिद्ध कहते हैं और किसी कारण से नही, अन्यथा अतिप्रसंग होगा। इस हेतु का साध्य से अविनाभाव ( उस के होने पर ही यह होता है इस तरह का नियत संबंध ) नही है अतः वह असिद्ध है ऐसा कहें तो विरुद्ध, अनैकान्तिक, अकिचित्कर ये सब हेत्वाभास भी असिद्धही होंगे (क्यों कि इन का भी साध्य से अविनाभाव नहीं होता ) अतः हेत्वाभास एकही होगा और हेत्वाभास चार हैं - असिद्ध, विरुद्ध, अनैकान्तिक और अकिंचित्कर - यह शंकाकार का कथन सुसंगत नही होगा । इस लिए हेतु पक्ष का धर्म हो तभी वह किसी पक्ष में इष्ट साध्य को सिद्ध कर सकता है केवल, अविनाभाव से नही । अन्यथा पर्वत अग्नि से युक्त है क्यों कि रसोई घर में धुंआ है इत्यादि हेतु भी साध्य को सिद्ध कर सकेंगे (तात्पर्य- धुंआ और अग्नि इन का अविनाभाव संबंध होने पर भी धुंए से अग्नि का अनुमान तभी होगा जब वह पर्वत इस पक्ष में विद्यमान हो) क्यों कि उन का भी साध्य से अविनाभाव है, किन्तु ऐसा नहीं होता, अतः पक्ष का धर्म ही योग्य हेतु होता है ऐसा मानना चाहिए । प्र.प्र.२
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org